जैविक खेती
जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए हमारा प्रमुख उद्दश्य है जहर मुक्त भोजन और किसानो की आय मे व्रद्धि। जैसा कि हमारे सभी पाठक ये बहुत ही अच्छी तरह से जानते है कि पूरे विश्व में तेजी से बढ़ती हुई जनसंख्या एक गंभीर रूप धारण करती जा रही है। और इस बढ़ती हुई जनसंख्या के साथ भोजन की समस्या भी दानव की तरह मानव के सामने खड़ी है।इतनी बड़ी जनसंख्या को भोजनआपूर्ति के लिए मानव द्वारा खाद्य उत्पादन की भी एक होड़ सी लगी है। और इस होड़ में अधिक से अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए किसानो द्वरा तरह-तरह के रासायनिक खादों, जहरीले कीटनाशकों का अपने खेतो भारी मात्रा मे लगातार प्रयोग प्रकृति के जैविक और अजैविक पदार्थो के बीच आदान-प्रदान के चक्र को (इकालाजी सिस्टम) प्रभावित कर रहा है। और इसका परिणाम भी आज हमारे सामने है। हमारी भूमि की उर्वरा शक्ति लगातार घटती जा रही है। और इसके साथ ही वातावरण भी तेजी से प्रदूषित हो रहा है। हजारो हेक्टेयर उपजाऊ भूमि अबतक बंजर भूमि मे बदल चुकी है। और इसका प्रमुख कारण है अधिक मात्रा मे रासायनिक उर्वरकों का उपयोग।
जानकर बताते है कि प्राचीन काल में मानव स्वास्थ्य के अनुकुल तथा प्राकृतिक वातावरण के अनुरूप ही खेती की जाती थी। जिस के कारण जैविक और अजैविक पदार्थो के बीच आदान-प्रदान का चक्र Ecological system लगातार चलता रहा था। इसके परिणामस्वरूप भूमि, वायु तथा वातावरण प्रदूषित नहीं होता था। कहते है कि भारत वर्ष में प्राचीन काल से किसानो द्वारा खेती-बाड़ी के साथ-साथ पशुपालन भी किया जाता था। पशुपालन संयुक्त रूप से अत्याधिक लाभदायी था, ये चक्र प्राणी मात्र के साथ-साथ ही वातावरण के लिए भी बहुत ही उपयोगी था। लेकिन परिवेश बदलने के साथ पशुपालन भी धीरे-धीरे कम हो गया जिसके कारण जैविक खादों की कमी बढ़ती गयी और फसलो में तरह-तरह की रसायनिक खादों व कीटनाशकों का प्रयोग तेजी से बढ़ता गया। इसी के परिणामस्वरूप जैविक और अजैविक पदार्थो के चक्र का संतुलन बिगड़ता जा रहा है। और हमारा वातावरण तेजी से प्रदूषित होकर मानव जाति के साथ-साथ समस्त जीवों के स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहा है।
इन्ही सब कारणों को ध्यान में रखकर किसान भाईयो को रसायनिक खादों, जहरीले कीटनाशकों के स्थान पर, जैविक खादों एवं दवाईयों का उपयोग करने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। जिससे हमारे किसान भाई अधिक से अधिक उत्पादन प्राप्त कर सकते है। और साथ ही भूमि, जल एवं वातावरण शुध्द रहेगा तथा मनुष्य एवं प्रत्येक जीवधारी भी स्वस्थ रहेंगे।
जैसा कि हमारे सभी पाठकगण जानते है कि हमारे भारत वर्ष की ग्रामीण अर्थवयवस्था पूरी तरह से कृषि पर आधारित है। और किसानों की आय का मुख्य साधन खेतो से प्राप्त फसल है। और अधिक फसल उत्पादन के लिये फसलो में अधिक मात्रा में रासायनिक उर्वरको एवं कीटनाशक का उपयोग करना पड़ता है जिससे सीमांत व छोटे किसानों के पास कम जोत मेें अत्यधिक लागत लग रही है इसके साथ ही जल, भूमि, वायु और वातावरण भी प्रदूषित हो रहा है। रासायनिक उर्वरकों के इस अधिक उपयोग से ही खाद्य पदार्थ भी जहरीले हो रहे हैे। इसलिए इस प्रकार की उपरोक्त सभी समस्याओं से निपटने के लिये गत वर्षो से निरन्तर टिकाऊ खेती के सिद्धांत पर खेती करने की सिफारिश की गई। कृषि विभाग ने इस विशेष प्रकार की खेती को अपनाने के लिए, बढ़ावा दिया जिसे हम ''जैविक खेती'' के नाम से जानते हेै। भारत सरकार भी इस खेती को अपनाने के लिए प्रचार-प्रसार कर रही है।
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