Thursday, July 28, 2016

आलू की उन्नत खेती / Kisan Help Room


आलू भारत की सबसे महत्वफपूर्ण फसल है। तमिलनाडु एवं केरल को छोडकर आलू भारत के सभी क्षेत्रो में उगाया जाता है।भारत मे आलू की खेती के लिए उत्तर प्रदेश, पच्छिम बंगाल,बिहार आदि प्रमुख राज्य है।
किसान आज से लगभग 7000 साल पहले से आलू उगा रहे हैं।

इसे सब्जियों का राजा कहा जाता है  भारत में शायद ही कोई ऐसा रसोई घर होगा जहाँ पर आलू ना दिखे । इसकी मसालेदार तरकारी, पकौड़ी,  चॉट, पापड चिप्स जैसे स्वादिष्ट पकवानो के अलावा अंकल चिप्स, भुजिया और कुरकुरे भी हर लोगो के मन को भा रहे हैं। प्रोटीन, स्टार्च, विटामिन सी और के  अलावा आलू में अमीनो अम्ल जैसे ट्रिप्टोफेन, ल्यूसीन, आइसोल्यूसीन आदि काफी मात्रा में पाये जाते है जो शरीर के विकास के लिए आवश्यक है।  किसान आज से लगभग 7000 साल पहले से आलू उगा रहे हैं। 
आलू की खेती के लिए उत्तम जलवायु 
आलू के लिए छोटे दिनों कि अवस्था आवश्यक होती है भारत के बिभिन्न भागो में उचित जलवायु कि उपलब्धता के अनुसार किसी न किसी भाग में सारे साल आलू कि खेती कि जाती बढवार के समय आलू को मध्यिम शीत की आवश्यवकता होती है। मैदानी क्षेत्रो  में बहुधा शीतकाल (रबी) में आलू की खेती प्रचलित है । आलू की वृद्धि एवं विकास के लिए तापक्रम 15- 25 डि से  के मध्य होना चाहिए। इसके अंकुरण के लिए लगभग 25 डि से. संवर्धन के लिए 20 डि से. और कन्द विकास के लिए 17 से 19 डि से. तापक्रम की आवश्यकता होती है, उच्चतर तापक्रम (30 डि से.) होने पर आलू  विकास की प्रक्रिया प्रभावित होती है अक्टूबर से मार्च तक,  लम्बी रात्रि तथा चमकीले छोटे दिन आलू बनने और बढ़ने के लिए अच्छे होते है। बादलो से भरे दिन, वर्षा तथा उच्च आर्द्रता वाला मौसम आलू की फसल में फफूँद व बैक्टीरिया जनित रोगों को फैलाने मे सहायक होते है।
आलू की फसल के लिए खेत का चुनाव
आलू को क्षारीय मृदा के अलावा सभी प्रकार के मृदाओ में उगाया जा सकता है परन्तु जीवांश युक्त रेतीली दोमट या सिल्टी दोमट भूमि इसकी खेती के लिए सर्वोत्तम मानी गई है। भूमि में उचित जल निकास का प्रबंध करना अति आवश्यक है। आलू की खेती के लिए मिटटी का P H मान 5.2 से 6.5 अत्यंत उपयुक्त पाया गया है। जैसे-जैसे यह P H मान ऊपर बढ़ता जाता है दशाएं अच्छी उपज के लिए प्रतिकूल होती जाती है।
आलू के कंद मिटटी के अन्दर तैयार होते है।इसलिए मिटटी का भुर भूरा होना अति आवश्यक है

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खेत की तैयारी
आलू की फसल के लिये जुताई करके मिट्टी को भुर-भुरा बनाना आवश्यक है।इसके लिए पहली जुताई मिटटी पलट हल से करनी चाहिये।इस के बाद दूसरी और तीसरी जुताई देसी हल या हैरो से करनी चाहिए। यदि खेती में ढेले हो तो इन पर पाटा चलाकर मिटटी को भुर-भुरा बना लेना चाहिए बुवाई के समय भूमि में पर्याप्त नमी का होना आवश्यक है यदि खेत में नमी कि कमी हो तो खेत में पलेवा करके जुताई करनी चाहिए ।
आलू की प्रमुख प्रजातियाँ
आलू की अच्छी किस्मो मे विदेशी और देशी दोनो प्रकार की किस्मे मिलती है।जिनमे कुछ विदेशी किस्मो को भारतीय परिस्थियों के लिए अनुकूल किया गया है इनमे से कुछ के नाम निचे दिये गए है ।
अपटुडेट , क्रेग्स डिफैंस , प्रेसिडेंट आदि .
केन्द्रीय आलू अनुसन्धान शिमला द्वारा बिकसित किस्मे
आलू की नवीनतम किस्मे
कुफरी चिप्सोना -1, कुफरी चिप्सोना -2, कुफरी गिरिराज, कुफरी आनंद आदि है ।
कुफरी चन्द्र मुखी
 80-90 दिन में तैयार  200-250 कुंतल उपज
कुफरी अलंकार
70 दिन में तैयार हो जाती है यह किस्म पछेती अंगमारी रोग के लिए कुछ हद तक प्रतिरोधी है यह प्रति हेक्टेयर 200-250 क्विंटल उपज देती है .
कुफरी बहार 3792 E
90-110 दिन में लम्बे दिन वाली दशा में 100-135 दिन में तैयार 
कुफरी नवताल G 2524
80 -120 दिन तैयार 150-250 क्विंटल/ हे उपज 
कुफरी शीत मान
100-130 दिन में तैयार  250 क्विंटल/ हे उपज 
कुफरी बादशाह
100-120 दिन में तैयार 250-275 क्विंटल/ हे उपज 
कुफरी सिंदूरी
120 से 140 दिन में तैयार 300-400 क्विंटल/ हे उपज 
कुफरी देवा
120-125 दिन में तैयार 300-400 क्विंटल/ हे उपज 
E 4,486
135 दिन में तैयार 250-300 क्विंटल उपज   हरियांणा,उत्तर प्रदेश,बिहार पश्चिम बंगाल गुजरात और मध्य प्रदेश में उगाने के लिए उपयोगी
कुफरी लालिमा
यह शीघ्र तैयार होने वाली किस्म है जो 90-100 दिन में तैयार हो जाती है इसके कंद गोल आँखे कुछ गहरी और छिलका गुलाबी रंग का होता है यह अगेती झुलसा के लिए मध्यम अवरोधी है ।
कुफरी स्वर्ण
110 में दिन में तैयार  उपज 300 क्विंटल/ हे उपज
संकर किस्मे 

कुफरी जवाहर JH 222
 90-110 दिन में तैयार  खेतो में अगेता झुलसा और फोम रोग कि यह प्रति रोधी किस्म है यह 250-300 क्विंटल उपज
JF 5106
उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्रो में उगाने के लिए अउपयोगी .75 दिनों की फ़सल   उपज 23-28 टन / 0 हे मिल जाती है 
कुफरी संतुलज J 5857 I
संकर किस्म सिन्धु गंगा मैदानों और पठारी क्षेत्रो में उगाने के लिए   75 दिनों की फ़सल   उपज 23-28 टन / हे उपज 
कुफरी अशोक P 376 J
75 दिनों मेकी फ़सल   उपज 23-28 टन / 0 हे मिल जाती है 
JEX -166 C
 अवधि 90 दिन में तैयार होने वाली किस्म है 30 टन /हे उपज
बीज का चुनाव 
आलू की बुआई करते समय किसानो को आलू के बीज की जानकारी होना अति अवश्यक है। क्यू कि आलू के बीज के आकार और उसकी उपज से प्राप्त लाभ का आपस मे गहरा सम्बंध है।प्राय: बडी माप के बीजों से उपज तो अधिक होती है परन्तु बीज की कीमत अधिक होने से पर्याप्त लाभ नही होता। बहूत छोटी माप का बीज सस्ता होगा परन्तु  रोगाणुयुक्त आलू पैदा होने का खतरा बढ जाता है। प्राय: देखा गया है कि रोगयुक्त फसल में छोटै माप के बीजो का अनुपात अधिक होता है। अत: अच्छी फसल तथा अधिक लाभ के लिए 3 से.मी. से 3.5 से.मी.आकार या 30-40 ग्राम भार के आलूओं को ही बीज के रूप में प्रयोग करना चाहिए। 
आलू मे लगने वाले प्रमुख रोग तथा उपचार
आलू मे लगने वाले प्रमुख रोग तथा इन रोगो से बचाव निम्न प्रकार है।
माहुं या चेंपा (Aphids)
यह गहरे हरे या काले रंग के होते है प्रौढ़ अवस्था में यह दो प्रकार के होते है पंखदार और पंख हिन् इसके अवयस्क और प्रौढ़ दोनों ही पत्तियों और शाखाओं का रस चूसते है अधिक प्रकोप होने पर पत्तियां निचे की ओर मुड जाती है और पीली पड़कर सुख जाती है इसकी पंखदार जाती विषाणु फ़ैलाने में सहायता करती है माहुं कीट एक सर्वव्यापी व बहुभक्षी कीट है। ये रस चूसने वाले कीट की श्रेणी में आते हैं। माइजस परसिकी (Myzus persicae) व एफिस गौसिपी (Aphis gossypii) नामक मांहू आलू की फसल पर प्रत्यक्ष रूप से तो ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचाते परंतु ये विषाणुओं को फैलाते हैं। रोग मुक्त बीज आलू उत्पादन में ये कीट प्रमुख बाधक हैं।
रोकथाम के उपाय
हमारे देश के गंगा के मैदानी इलाकों में ही लगभग 90% आलू की खेती की जाती है। इन क्षेत्रों में आलू की फसल माहुं रहित अवधि में करनी चाहिए।
आलू की फसल तथा अन्य सब्जियों की फसल के बीच कम 50 मीटर की दूरी रखें।
खेतों में या आसपास उगे माहुं ग्रसित पौधों, विशेषकर पीले रंग के फूल वाले पौधो को उखाड़ कर नष्ट कर देना चाहिए।
जैसे प्रति हे.100 पत्तियों पर माहुं की संख्या 20 से ज्यादा होने लगे तो फसल के डंठलों को काट दें।
उपचार
देसी गाय का 5 लीटर मट्ठा लेकर उसमे 5 किलो नीम कि पत्ती या 2 किलोग्राम नीम कि खली या 2 किलोग्राम  नीम की पत्त्ती एक बड़े मटके में 40-50 दिन भरकर तक सडा कर - सड़ने के बाद उस मिश्रण में से 5 लीटर मात्रा को 200 लीटर पानी में डालकर अच्छी तरह मिलाकर तर बतर कर प्रति एकड़ छिड़काव करे ।
कुतरा
इस किट कि सुंडिया आलू के पौधों और शाखाओं और उगते हुए कंदों को काट देती है बाद कि अवस्था में इसकी सुंडी आलुओं में छेद कर देती है जिससे कंदों का बाजार भाव कम हो जाता है यह कीट रात में फसल को क्षति पहुंचाती है ।
उपचार
10 लीटर देसी गाय के गोमूत्र में 2 किलो अकौआ की पत्ती 2 किलो नीम की पत्ती 2 किलो बेसरम की पत्ती मिलाकर 10-15 दिन तक सड़ाकर इस मूत्र को आधा शेष बचने तक उबालकर फिर इसके 1 लीटर मिश्रण को 200 लीटर पानी में मिलाकर तर बतर कर पम्प द्वारा प्रति एकड़ छिड़काव करे ।
व्हाईटगर्ब
इसे कुरमुला कि संज्ञा भी दी जाती है जो सफ़ेद या सलेटी रंग की होती है इसका शरीर मुडा हुआ और सर भूरे रंग का होता है यह जमीन के अन्दर रहकर पौधों कि जड़ो को क्षति पहुंचता है इसके अतिरिक्त आलू में छिद्र कर देती है जिसके कारण आलू का बाजार भाव कम हो जाता है ।
उपचार
10 लीटर देसी गाय का गोमूत्र में 2 किलो अकौआ कि पत्ती मिलाकर 10-15 दिन तक सड़ाकर इस मूत्र को आधा शेष बचने तक उबालकर फिर इसके 1 लीटर मिश्रण को 200 लीटर पानी में मिलाकर तर बतर कर पम्प द्वारा प्रति एकड़ छिड़काव करे ।

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एपिलेकना
यह छोटा , पीलापन लिए हुए भूरे रंग का कीट है। इसकी पीठ का भाग उठा हुआ होता है जिस पर काफी बिंदिया पाई जाती है अवयस्क और प्रौढ़ कीट दोनों ही क्षति पहुंचाते है। पौधों कि पत्तियों को कीट तथा इसके बच्चे धीरे धीरे खुरच कर खा जाते है। और पत्तियां सुख जाती है ।
उपचार
10 लीटर देसी गाय का गोमूत्र में 2 किलो अकौआ की पत्ती 2किलो नीम की पत्ती 2किलो बेसरम की पत्ती मिलाकर 10-15 दिन तक सड़ाकर इस मूत्र को आधा शेष बचने तक उबालकर फिर इसके 1 लीटर मिश्रण को 200 लीटर पानी में मिलाकर तर बतर कर पम्प द्वारा प्रति एकड़ छिड़काव करे ।
अगेतीअंगमारी
यह रोग आल्तेरनेरिया सोलेनाई नामक फफूंदी के कारण लगता है उत्तरी भारत में इस रोग का आक्रमण शरद ऋतू के फसल पर नवम्बर में और बसंत कालीन फसल पर फरवरी में होता है यह रोग कंद निर्माण से पहले ही लग सकता है। निचे की पत्तियों पर सबसे पहले प्रकोप होता है जंहा से रोग बाद में ऊपर कि ओर बढ़ता है पत्तियों पर छोट छोटे गोल अंडाकार या कोणीय धब्बे बन जाते है जो भूरे रंग के होते है ये धब्बे सूखे एवं चटकने वाले होते है। बाद में धब्बे के आकार में वृद्धि हो जाती है। जो पूरी पत्ती को ढक लेती है जिस से रोगी पौधा मर जाता है ।
उपचार
10 लीटर देसी गाय के मूत्र में 2 किलो अकौआ की पत्ती 2 किलो नीम की पत्ती 2 किलो बेसरम की पत्ती मिलाकर 10-15 दिन तक सड़ाकर इस मूत्र को आधा शेष बचने तक उबालकर फिर इसके 1 लीटर मिश्रण को 200 लीटर पानी में मिलाकर तर बतर कर पम्प द्वारा प्रति एकड़ छिड़काव करे ।
पछेती अंगमारी
यह रोग फाइटो पथोरा इन्फैस्तैन्स नामक फफूंदी के कारण होता है। इस रोग में पत्तियों कि शिराओं , तनो डंठलो पर छोटे भूरे रंग के धब्बे उभर आते है जो बाद में काले पड़ जाते है और पौधे के भूरे भाग गल सड़ जाते है रोकथाम में देरी होने पर आलू के कंद भूरे बैगनी रंग में परवर्तित होने के उपरांत गलने शुरू हो जाते है ।
उपचार
10 लीटर देसी गाय का गोमूत्र में 2 किलो अकौआ की पत्ती 2 किलो नीम की पत्ती 2 किलो बेसरम की पत्ती मिलाकर 10-15 दिन तक सड़ाकर इस मूत्र को आधा शेष बचने तक उबालकर फिर इसके 1 लीटर मिश्रण को 200 लीटर पानी में मिलाकर तर बतर कर पम्प द्वारा प्रति एकड़ छिड़काव करे ।
500 ग्राम लहसुन और 500 ग्राम तीखी चटपटी हरी मिर्चलेकर बारीक़ पीसकर 200 लीटर पानी में घोलकर थोडा सा शैम्पू झाग के लिए मिलाकर प्रति एकड़ तर बतर कर अच्छी तरह छिड़काव ।
काली रुसी ब्लैक स्कर्फ
यह रोग राइजोक्टोनिया सोलेनाई नामक फफूंदी के कारण होता है इस रोग का आक्रमण मैदानी या पर्वतीय क्षेत्र में होता है रोगी कंदों प़र चाकलेटी रंग के उठे हुए धब्बो का निर्माण हो जाता है जो धोने से साफ नहीं होते है है इस फफूंदी का प्रकोप बुवाई के बाद आरम्भ होता है जिससे कंद मर जाते है और पौधे दूर दूर दिखाई पड़ते है ।
उपचार
10 लीटर देसी गाय का गोमूत्र में 2 किलो अकौआ की पत्ती 2 किलो नीम की पत्ती 2 किलो बेसरम की पत्ती मिलाकर 10-15 दिन तक सड़ाकर इस मूत्र को आधा शेष बचने तक उबालकर फिर इसके 1 लीटर मिश्रण को 200 लीटर पानी में मिलाकर तर बतर कर पम्प द्वारा प्रति एकड़ छिड़काव करे    

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