Monday, February 5, 2018

बीमारियो से बचना है तो फैमली डॉक्टर नही फैमली किसान है ज़रूरी



स्वाभाविक मृत्यु से अलग यदि देखा जाए तो मृत्यु का एक बड़ा कारण है बीमारी और इनमें से कैंसर का स्थान दूसरे नंबर पर आता है। अगर आकड़ो को देखा जाये तो वैश्विक मृत्युसंख्या का लगभग 16% यानी हर 6 में से 1 व्यक्ति की मौत कैंसर की वजह से होती है। ये आंकड़े कितने खतरनाक है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि विश्व मे लगभग 90 लाख मृत्यु प्रतिवर्ष केंसर के कारण होती है। अगर भारत के संदर्भ में देखा जाये तो यह आंकड़ा लगभग 6 लाख मृत्यु प्रतिवर्ष है। यानी हर एक मिनट में एक व्यक्ति की मृत्यु कैंसर के कारण हो रही है।



आकड़ो से पता चलता है कि विकासशील देशों में 30 प्रतिशत से भी कम लोगों को कैंसर के इलाज के लिए सही चिकित्सा सुविधाएं मिल पाती हैं। वहीं दूसरी तरफ विकसित देशों में 90 प्रतिशत से अधिक लोगों तक समुचित चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध हैं। इससे यह स्वाभाविक निष्कर्ष निकल आता है कि कैंसर से मरने वाले लोगों में अधिकांश जनसंख्या विकासशील और गरीब देशों की है। कैंसर से होने वाली मृत्यु में हर 10 में से 7 व्यक्ति विकासशील या गरीब देशों से ही आते हैं।
इंडियन कॉउन्सिल ऑफ मेडिकल रिसर्च की रिपोर्ट के अनुसार 2016 में भारत में वार्षिक नए कैंसर मरीजों की संख्या साढ़े चौदह लाख होने का अनुमान किया गया था। इस रोग की भयावहता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 2020 तक साढ़े 17 लाख से अधिक नए मरीज इस आंकड़े में जुड़ने जाएंगे। ऐसा अनुमान है कि वर्तमान में लगभग 25 लाख से अधिक लोग भारत मे कैंसर की क्रांतिक अवस्था से गुजर रहे हैं।
शोध बताते है कि कैंसर के नए मरीजों में लगभग आधे मरींज ऐसे है जिनमे कैंसर की रोकथाम उचित खानपान और जीवनशैली में बदलाव लेकर की जा सकती है। लेकिन ये तभी सम्भव है जब केंसर का पता कैंसर की प्रारंभिक अवस्था मे ही चल जाये। लेकिन ऐसा होता नही है। सबसे चिंतनीय पहलू यह है कि इन मरीजों में हर 8 में से केवल 1 मरीज ही प्रारंभिक अवस्था मे चिकित्सीय परीक्षण और निदान हेतु अस्पतालों तक पहुंच पाता है।

कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी का कारण क्या है?

कैंसर के कारणों में तंबाकू का सेवन प्रमुख माना जाता है। इसके बाद जो मुख्य कारण है वह है हमारा खान-पान।
आज हमारे भोजन में जिस तरह से रासायनिक खादों, कीटनाशकों और भारी धातुओं के अवशेष मिल रहे हैं वही इस रोग को तेजी से जन्म दे रहे हैं। शहरों के सीवरेज के दूषित पानी से सिंचाई करके उगाई जाने वाली सब्जियों में भारी तत्वों की उपस्थिति भी इस रोग का एक प्रमुख कारण है।
इसके अतिरिक्त डिब्बाबंद खानों में भोज्य पदार्थ को सुरक्षित रखने के लिए मिलाया जाने वाला परिरक्षक हो या मिठाइयों और अन्य खाद्य पदार्थों को आकर्षक रंग देने के लिए मिलाया जाने वाला रंग। ये सभी संश्लेषित रसायन हमारे लिए कैंसर की तरफ जाने की राह आसान करते हैं।
कैंसर होने के कारण और भी बहुत से है और इनमे से अधिकांश कारण आधुनिकता की देन हैं। अगर इनके रासायनिक विश्लेषण पर जाएंगे तो पोस्ट बहुत लंबी हो जाएगी। बस ये समझ लीजिए कि आपकी थाली तक पहुंचने वाले खाद्य पदार्थ की मनमोहक सूरत दिखने में आकर्षक भले ही हो पर अब उसकी सीरत यानी उसके अंदर क्या है.. यह भी पहचानने का समय आ गया है।


अभी ज्यादा तकनीकी और वैज्ञानिक पहलुओं से अलग बस आसान भाषा मे यह समझ लीजिए कि इस जानलेवा बीमारी के मुख्य कारणों में से एक कारण आपके मुंह से होकर जाता है। इसलिए अब जब भी आपकी थाली में कुछ आये, खाने के पहले सुनिश्चित कीजिये कि आप जो खा रहे हैं वो कहीं आपको कैंसर की तरफ तो नही धकेल रहा।
कैंसर के साथ-साथ और भी कई बीमारियां हमारे खान-पान से ही हो रही है।


आज किसान भी आय को लेकर परेशान है कर्ज के बोझ से दबा जा रहा है। अपनी आय को बढ़ाने के लिए ही किसान अधिक उत्पादन करना चाहता है। जो जहरीले खाद और दवाओं के अधिक प्रयोग से ही सम्भव भी हो रहा है।
खाद्य पदार्थो मे इस जहर को कम करने के लिए हमे अब फेमली किसान की ज़रूरत है जो हमे जैविक तरीके से फल और सब्जियां उगाकर दे। हम कुछ अधिक पैसा देकर जहरमुक्त खाद्य पदार्थ किसानों से ले सकते है इससे किसानों को भी लाभ मिलेगा और हमे अच्छी हेल्थ

जीवामृत फसल उत्पादन बढ़ाने के साथ ही मिट्टी को भी उपजाऊ बनाता है।

नाडेप विधि से किसान कम समय मे अच्छी किस्म की जैविक खाद तैयार कर सकते है।
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Wednesday, January 31, 2018

गाजर की खेती से यहा कमाते है किसान 3 महीने में 2 करोड़ रुपये



आमतौर पर हमारे देश के किसान ने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा कि गाजर की खेती से मात्र तीन माह में दो करोड़ रुपए की कमाई कर सकते है। लेकिन अब ऐसा हो रहा है। भरतपुर के एक गांव इंद्रोली मे। इस गांव के किसानों को जब लुपिन फाउण्डेशन ने उच्च गुणवत्तायुक्त बीज देने के साथ ही खेती करने की तकनीक और अच्छे बाजार की जानकारी दी तो उन्होंने अपनी कड़ी मेहनत और लगन से इस सपने को हकीकत में तब्दील करदिया। आज इंद्रोली गांव की स्थिति यह है कि इस गांव से प्रतिदिन करीब 100 कुंतल गाजर नई दिल्ली, गुडग़ांव अथवा आस-पास की मंडियों में विक्रय के लिए भेजी जाती हैं।



इन्द्रोली गांव की जमीन रेतीली एवं उपजाऊ होने के साथ ही यहा सिंचाई के लिए भरपूर मीठा पानी उपलब्ध है। जो गाजर के अच्छे उत्पादन सहायक है। इसी वजह से यहा के किसानों को गाजर की बम्पर पैदावार मिलती है। इसके साथ ही इस गांव के किसान अपनी गाजर की फसल को उच्च मूल्य पर बेचने के लिए इसकी बुवाई अगस्त माह में ही कर देते हैं। और इन किसानों की गाजर की फसल अक्टूबर माह मे ही बाजार में आना शुरू हो जाती है जिससे किसानों को इस फसल का कई गुना अधिक मूल्य मिलता है।

जीवामृत उत्पादन बढ़ाने के साथ ही भूमि की उर्वराशक्ति भी बढ़ा रहा है।


इन्द्रोली गांव में लगभग 250 बीघा भूमि में गाजर की फसल उगाई जाती है। जिसके लिए पांच-छह बार सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है और गाजर की खुदाई के बाद इसकी धुलाई के लिए जो मजदूरो पर खर्च होता था उसे कम करने के लिए किसानों ने गजर की धुलाई के लिए दो धुलाई मशीनें खरीद खरीदी है। इन मशीनों की सहायता से किसान मात्र एक घण्टे में करीब 20 क्विंटल गाजरों की धुलाई कर लेते हैं।

अब नाम से बिकती हैं गाजर

इंद्रोली के किसानों को लुपिन फाउण्डेशन ने अधिक उत्पादन देने वाले गुणवत्तायुक्त बीज उपलब्ध कराए। और किसानों ने भी खूब मेहनत की जिसके कारण आज इन्द्रोली की गाजर पूरे क्षेत्र में प्रसिद्ध हो गई। आब स्थिति यह है कि कोसी अथवा होडल की सब्जी मण्डियों में इन्द्रोली की गाजर दाम से नहीं अब तो नाम से बिकती है और रेट भी अधिक मिलता हैं। इन्द्रोली गांव के किसानों को समय-समय पर गाजर की फसलों में लगने वाले रोगों की रोकथाम के अलावा फसल क्रिया की भी लुपिन फाउण्डेशन के विषय-विशेषज्ञों द्वारा जानकारी उपलब्ध कराई जाती है। अगेती गाजर की बुवाई करने वाले किसान इसकी फसल लेने के बाद गेहूं की बुवाई कर देते हैं जबकि पछेती बुवाई करने वाले किसान गाजर की फसल के बाद मूंग अथवा अन्य दलहनी फसलों की बुवाई करते हैं जिसके कारण इनकी आय में और वृद्धि हो जाती है।


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Friday, January 19, 2018

अर्का रक्षक प्रजाति के टमाटर से किसान कर रहे है अधिक कमाई



किसान भाईयो आमतौर पर टमाटर का एक पौधा 5 किलो से लेकर 10 किलो तक टमाटर देता है।। अधिक लागत और कड़ी मेहनत से किसान भाई एक पौधे से 12 से 14 किलो तक टमाटर प्रप्त करलेते है। लेकिन
हम इस लेख मे जिस प्रजाति के टमाटर के पौधे का जिक्र करने जा रहे हैं वो कोई मामूली टमाटर के पौधे नहीं है। बल्कि भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान (IIHR) द्वरा विकसित किया गया है। जिस की पैदावार आम प्रजाति के पौधों से कही अधिक है। इस प्रजाति के एक पौधे से 19 किलो टमाटर का उत्पादन प्रप्त हुआ है। 



रिकॉर्ड बनाने वाली टमाटर की इस नई उन्नतशील प्रजाति का नाम अर्का रक्षक है। भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों ने परिशोधन खेती के अंतर्गत उन्नतशील प्रजाति के इस पौधे से इतनी उपज प्राप्त की है।
इस विधि से टमाटर उत्पादन का ये उच्चतम उपज स्तर है। इस रिकार्ड तोड़ उत्पादन ने टमाटर की खेती करने वाले किसानों भाईयो के चेहरे पर खुशिया ला दी है।  भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान अर्कावथी नदी के किनारे स्थित होने के कारण ही उत्पादन के रिकॉर्ड बनाने वाली टमाटर की इस नई प्रजाति को अर्का रक्षक नाम दिया गया है।

संरक्षित खेती से हो रही है किसानों की आय दो गुनी

फसल उत्पादन बढ़ाने के साथ-साथ मिट्टी की उर्वरा शक्ति भी बढ़ा रहा है जीवामृत


इस नई प्रजाति के बारे में संस्थान के प्रमुख वैज्ञानिक और सब्ज फसल डिवीजन के प्रमुख एटी सदाशिव जानकारी देते हुए बताते है कि पूरे देश में टमाटर की ये सर्वाधिक उपज है। और वैज्ञानिक आंकड़ों के अनुसार टमाटर की ये प्रजाति देश में टमाटर की सबसे ज्यादा उपज देने वाली प्रजाति साबित हुई है।
उन्होंने बताया कि टमाटर के संकर प्रजाति के दूसरे पौधों से अबतक सर्वाधिक उपज 15 किलो तक रिकार्ड की गई है। उन्होंने कहा कि जहां कर्नाटक में टमाटर का प्रति हेक्टेयर औसत उत्पादन 35 टन है। वहीं अर्का रक्षक प्रजाति की टमाटर का उत्पादन प्रति हेक्टेयर 190 टन तक प्राप्त हुआ है।
इस नई प्रजाति के टमाटर के पौधे को लेकर किसानों के बीच काफी उत्सुकता पाई गई है। कई किसान इसकी खेती को लेकर काफी खुश नज़र आ रहे हैं। और कुछ किसान भाई तो इस प्रजाति के टमाटर की खेती कर रिकार्ड उपज भी प्राप्त कर चुके हैं।

इन्ही किसानों मे से एक किसान चंद्रापप्पा जो कि चिक्कबल्लपुर जिले के देवस्थानदा हौसल्ली के रहने वाले है उन्होंने इस उन्नतशील प्रजाति के 2000 टमाटर के पौधे अपने आधे एकड़ के खेत में लगाकर 38 टन टमाटर की उपज प्राप्त की है जबकि इतनी संख्या मे ही अन्य हाइब्रिड टमाटर के पौधे से उन्हें लगभग 20 टन टमाटर का उत्पादन प्राप्त होता था।
डॉ सदाशिव अर्का रक्षक प्रजाति के बारे में जानकारी देते हुए बताते है कि ये प्रजाति सिर्फ उच्च उत्पादन देने वाली प्रजाति ही नहीं है बल्कि टमाटर के पौधों में लगने वाले तीन प्रकार के मुख्य रोग जैसे- पत्तियों में लगने वाले कर्ल वायरस, विल्ट जिवाणु और फसल के शुरूआती दिनों में लगने वाले विल्ट जिवाणु से सफलतपूर्वक लड़ने की भी इन पौधों मे प्रतिरोधक क्षमता मौजुद हैं। उनका कहना है कि अर्का रक्षक की खेती करने से किसानों के कवक और कीटनाशकों पर होने वाले खर्च की बचत भी होती है। जिससे टमाटर की खेती की लागत में दस फीसदी तक की कमी आती है।
इसके साथ ही गहरे लाल रंग के इस टमाटर की खेती के कुछ अन्य फायदे भी हैं। जैसे इसके गहरे रंग की वजह से इन टमाटरों को अधिक दूरी तक ट्रांसपोर्ट के जरिए भेजा जा सकता है। अन्य सामान्य प्रजातियों के टमाटरों की फसल को पौधों से तुड़ाई के बाद छह दिनों तक रखा जा सकता है। जबकि संकर प्रजाति के टमाटर दस दिनों तक सुरक्षित रखा जा सकता है। लेकिन अर्का रक्षक प्रजाति के टमाटर पंद्रह दिनों तक आसानी से किसी अन्य प्रयास के सुरक्षित रखे जा सकते हैं।

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Tuesday, January 16, 2018

ब्रोकली की उन्नत खेती

  • ब्रोकली



ब्रोकोली फूल गोभी की तरह दिखने वाली एक स्वादिष्ट और प्रोटीन से भरपूर हरी सब्जी है। इसकी खेती भी फूलगोभी की खेती की तरह ही की जाती है। और ब्रोक्ली के बीज तथा पौधे भी देखने में लगभग फूल गोभी के जैसे ही होते है। ब्रोकोली का मुख्य भाग जो खाने के लिए उपयोग में लाया जाता है वह बहुत छोटे-छोटे हरे फूल कलिकाओं का एक गुच्छा होता है। जिसे फूल खिलने से पहले ही पौधों से काटकर अलग कर लिया जाता है। फूल गोभी में जहां एक पौधे से सिर्फ एक ही फूल मिलता है वही ब्रोकोली के पौधे से एक मुख्य गुच्छा काटने के बाद भी इसी पौधे से कुछ अन्य शाखायें निकलती है।जिनसे बाद में ब्रोकोली के छोटे गुच्छे बेचने अथवा खाने के लिये प्राप्त हो जाते है। ब्रोकली दिखने मे लगभग फूल गोभी की तरह ही होती है लेकिन इसका रंग हरा होता है इसलिए इसे हरी गोभी भी कहते है उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्रों में जाड़े के दिनों में ब्रोकली की खेती बड़ी सुगमता पूर्वक  की जा सकती है जबकि हिमाचल प्रदेश , उत्तरांचल और जम्मू कश्मीर में में इनके बीज भी तैयार किये जा सकते है।



ब्रोकली के लिए उत्तम जलवायु

किसान भाईयो ब्रोकली की फसल के अच्छे उत्पादन के लिए ठंडी और आद्र जलवायु की आवश्यकता होती है। अच्छी पैदावार के लिए दिन अपेक्षाकृत छोटे और राते बड़ी होनी चाहिए। ऐसी जलवायु मे ब्रोकली के फूल की बढ़वार अच्छी होती है। क्योंकि फूल तैयार होने के समय तापमान अधिक होने से फूल छितरेदार, पत्ते दार तथा पीले पड़ जाते है।

ब्रोकली की खेती के लिए मिट्टी का चुनाव

किसान भाईयो ब्रोकली की खेती लग-भग सभी प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है लेकिन अच्छी फसल और अधिक उत्पादन के लिये दोमट या हलकी बलुई दोमट जैविक जमीनें इस के लिए सब से अच्छी मानी जाती हैं। जिनका पीएच मान 6.0-7.5 के बीच का हो। हल्की रचना वाली भूमि में भी पर्याप्त मात्रा में जैविक खाद डालकर ब्रोकली की लाभदायक खेती की जा सकती है।

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उन्नत प्रजातियाँ

किसान भाईयो ब्रोकली की तीन मुख्य प्रजाति होती है। 

1 श्वेत

2 हरी
3 बैंगनी

इनमे हरे रंग की गंठी हुई शीर्ष वाली किस्मे बाजार मे अधिक पसंद की जाती है। इनमे नाइन स्टार , पेरिनियल,इटैलियन ग्रीन स्प्राउटिंग,या केलेब्रस,बाथम 29 और ग्रीन हेड ब्रोक्ली की प्रमुख किस्मे है।

संकर किस्मे

पाईरेट पेकमे, प्रिमिय क्राप, क्लीपर , क्रुसेर, स्टिक व ग्रीन सर्फ़ प्रमुख किस्मे है।
अभी हाल भारतीय कृषि अनुसन्धान संस्थान क्षेत्रीय केंद्र कटराई द्वारा ब्रोकली की के.टी.एस.9 किस्म भी विकसित की गई है। जिसके पौधे मध्यम उचाई के होते है। तथा पत्तियां गहरी हरे रंग की होती है। इसका शीर्ष सख्त और छोटे तने वाला होता है। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान नई दिल्ली ने हाल ही में पूसा ब्रोकोली 1 क़िस्म की खेती के लिये सिफ़ारिश की है।

बीज बुवाई का समय

किसान भाईयो उत्तर भारत के मैदानी भागो में ब्रोकोली की फसल उगाने का सही समय ठण्ड का मौसम होता है। ब्रोकली के बीज के अंकुरण तथा पौधों को अच्छी वृद्धि के लिए तापमान लगभग 20 से 25 डिग्री सेल्सियस होना चाहिए। इसकी नर्सरी तैयार करने का सही समय अक्टूम्बर का दूसरा पखवाडा माना जाता है। पर्वतीय क्षेत्रों में जो क़म उचाई वाले क्षेत्र है उनमें  सितम्बर- अक्टूम्बर , मध्यम उचाई वाले क्षेत्रों में अगस्त सितम्बर तथा अधिक़ उचाई वाले क्षेत्रों में मार्च- अप्रैल में ब्रोकली के बीजो की बुवाई की जाती है।

बीज की मात्रा

गोभी की तरह ही ब्रोकली के बीज भी बहुत छोटे होते है। एक हेक्टेअर मे फसल बुवाई के लिए जो पौध तैयार की जाएगी उसके लिये लगभग 375 से 400 ग्राम बीज की मात्रा पर्याप्त होती है।



पौध तैयार करना

किसान भाईयो ब्रोकोली की भी गोभी की तरह ही पहले से पौध (नर्सरी) तैयार करते है। और बाद में इस पौध का खेत मे रोपण किया जाता है। अच्छे और स्वस्थ पौधे उगाने के लिए 3 फिट लम्बी और 1 फिट चौड़ी तथा जमीन की सतह से 1.5 से.  मी. उची क्यारीयो में बीज की बुवाई की जाती है। क्यारी की 2-3 बार जुताई करके मिट्टी को भुरभुरा बनाकर अच्छी प्रकार से तैयार करले। इन क्यारियों मे सड़ी हुई गोबर की खाद अथवा वर्मीकम्पोस्ट मिलाकर क्यारी को समतल करले। इसके बाद बीज को पंक्तियों में 4-5 से.मी. की दुरी पर 2.5 से.मी. की गहराई पर बुवाई करते है। बीज बुवाई के बाद क्यारीयो को घास-फूस या फिर जुट की हल्की पर्त से ढक देते है।
क्यारीयो की समय-समय पर सिचाई करते रहते है। जैसे ही पौधे मिट्टी से बाहर निकलना शुरू होते है क्यारी के ऊपर से घास-फूस अथवा जूट को हटा दिया जाता है। समय-समय पर निराई-गुड़ाई करके क्यारियों से खरपतवार हटाते रहे तथा नर्सरी में पौधों को कीटों से बचाव के लिए नीम का तेल या गोमूत्र का प्रयोग करें।

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पौध रोपाई

पहले से तैयार नर्सरी में जब पौधे करीब 4 सप्ताह के हो जायें तो इनकी रोपाई तैयार खेत में की जाती है। खेत मे पौधों को कतार में लगाया जाता है और कतार से कतार की दूरी 15 से 60 से. मीटर तथा पौधे से पौधे के बीच 45 सें०मीटर की दूरी रखी जाती है। रोपाई करते समय मिट्टी में पर्याप्त नमी बनी रहनी चाहिए तथा पौध रोपाई के तुरन्त बाद खेत की हल्की सिंचाई अवश्य करें।



खाद तथा उर्वरकों की मात्रा

ब्रोकली की अच्छी पैदावार लेने के लिए खेत मे खाद व उर्वरकों की मात्रा मिट्टी परीक्षण के आधार पर देना सही रहता है। अगर मिट्टी परीक्षण नही किया है तो ब्रोकली की फसल का अधिक उत्पादन लेने के लिए
गोबर की अच्छी तरह सड़ी खाद 20-30 टन प्रति हेक्टर

नाइट्रोजन, 80-100 किलोग्राम

फास्फोरस 45-50 किलोग्राम

पोटाश 70 किलोग्राम

प्रति हेक्टेयर की दर से खाद की आवश्यकता होती है।गोबर की खाद अथवा वर्मीकम्पोस्ट, फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा अंतिम जुताई पर खेत की तैयारी के समय फसल रोपाई से पहले ही मिट्टी में अच्छी तरह मिला देना चाहिए। नाइट्रोजन को 3 भागों में बांट कर फसल रोपाई के 25, 45 और 60 दिनों बाद फसल मे देना चाहिए। नाइट्रोजन को दूसरी बार लगाने के बाद पौधों पर मिट्टी की परत चढ़ाना सही रहता है।

निराई-गुड़ाई तथा फसल की सिंचाई

किसान भाईयो ब्रोकोली की पौधों तथा इनकी जड़ो की अच्छी बढ़वार के लिए के लिए समय-समय पर खेत की निराई-गुड़ाई करके खरपतवार को निकालते रहना चाहिए। गुड़ाई करने से पौधों की बढ़वार तेज होती है गुड़ाई के उपरांत पौधे के पास मिटटी चढ़ा देने से पौधे पानी देने पर गिरते नहीं है।
मिट्टी मौसम तथा पौधों की बढ़वार को ध्यान में रखकर ही फसल की सिंचाई करनी चाहिए। सामान्यतः इस फ़सल में लगभग 10-15 दिन के अन्तर पर हल्की सिंचाई की आवश्यकता होती है।

प्रमुख कीट और इनकी रोकथाम

किसान भाईयो ब्रोकली की फसल के शुरुआती दिनों में गिडार आरा मक्खी, तंबाकू की सूंड़ी आदि कई कीटों का हमला होता है। इन की रोकथाम के लिए मैलाथियान 50 ईसी या मिथाइल पैराथियान 50 ईसी की 10-15 मिलीलीटर मात्रा 10 लीटर पानी में घोल बनाकर जरूरत के मुताबिक 2-3 बार छिड़काव करना चाहिए।

प्रमुख रोग तथा इनसे बचाव

ब्रोकली की फसल में काला सड़न (ब्लैक राट) व पत्ती धब्बा आदि रोग ज्यादा अधिक प्रभाव होता हैं।
काला सड़न -  इस रोग में पत्तियों के किनारे पर वी आकार के मुरझाए हुए धब्बे दिखाई देते हैं। रोग के बढ़ने पर पत्तियों की शिराओं का रंग काला व भूरा होने लगता है।
इस रोग की रोकथाम के लिए पौध लगाने से पहले 3 फीसदी फार्मेलीन के घोल से क्यारी को उपचारित कर के काली पालीथीन से तुरंत ढक कर चारों ओर से दबा देंना चाहिए।
पत्ती धब्बा रोग - इस रोग की वजह से पत्तियों पर अनेक छोटेछोटे गहरे रंग के धब्बे बन जाते है। इन धब्बों के बीच के भाग पर नीलापन लिए हुए फफूंदी पाई जाती है।
पत्ती धब्बा रोग की रोकथाम के लिए 2.5 किलोग्राम मैंकोजेब प्रति हेक्टेयर की दर से 600 लीटर पानी में घोल कर अच्छे से फसल पर छिड़काव करें। ब्रोकली की बढि़या फसल लेने के लिए एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन को भी अपनाने की जरूरत है।



फसल कटाई व प्राप्त उपज

पौध रोपाई के 60 से 65 दिन बाद फसल में जब हरे रंग की कलियों का मुख्य गुच्छा बन कर तैयार हो जाए तो उसे तेज चाकू या दरांती से ध्यानपूर्वक काटना चाहिए। ध्यान रखें कि कटाई के समय गुच्छा खूब गुंथा हुआ व कसा हो और उस में कोई कली खिलने न पाए। ब्रोकली की अगर तैयार होने के बाद देर से कटाई की जाएगी तो वह ढीली हो कर बिखर जाएगी और उस की कली खिल कर पीला रंग दिखाने लगेगी। ब्रोकली के ऐसे खिले हुए गुच्छो का बाजार मे अच्छा भाव नही मिलता और किसान को हानि होती है।
ब्रोकली के मुख्य गुच्छे को काटने के बाद इसी पौधों में दूसरी नई-नई शाखाएं निकल आती हैं। इन शाखाओं पर कई छोटे गुच्छे लगते है। पौधे का मुख्य गुच्छा लगभग 200-400 ग्राम तक होता है। और इसकी की कटाई के बाद दूसरी नई सखाओं से प्राप्त छोटे गुच्छे 100-150 ग्राम तक के होते हैं। इस प्रकार से 1 पौधे से लगभग 800-1000 ग्राम या 1 किलोग्राम तक ब्रोकली किसान को प्राप्त होती है। ब्रोकली की अच्छी फसल से प्रति हेक्टेयर करीब 160-180 क्विंटल उपज मिल जाती है।

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Tuesday, January 9, 2018

मटका खाद (जैविक)



मटका खाद

किसान भाईयो जैविक उर्वरको में मटका खाद अपना एक विशेष स्थान रखती है। इस खाद के प्रयोग से पौधे अच्छी तरह से उगते हैं। और इनकी बढ़वार भी ठीक प्रकार से होती है।मटका खाद भी दूसरी जैविक खादों की तरह ही काफी कम खर्च में हमारे आस-पास मौजूद चीजों से ही तैयार हो जाती है। जैविक उर्वको को बढ़ावा देने का मकसद भी यही है कि ये खाद हमारे पास मौजूद जैविक कचरो से ही कम खर्च पर तैयार होने के साथ-साथ वातावरण को भी प्रदूषण मुक्त कर रही है। और हमारे स्वास्थ्य पर जो रासायनिक उर्वरकों का दुष्प्रभाव पड़ रहा है उसे भी बचा रही है। किसानों द्वारा अपने खेतों मे लगातार जैविक उर्वरको का उपयोग करने से मिट्टी की उर्वरा शक्ति तो बढ़ ही रही है।साथ फसल उत्पादन पर भी इसका अच्छा प्रभाव पड़ रहा है।
किसान भाईयो जैविक खाद तैयार करने की कई विधियां है जैसे- नाडेप विधि, वर्मीकम्पोस्ट(केचुआ खाद), बायोगैस स्लरी आदि। इन्ही मे एक विधि है मटका विधि जिससे हम अच्छी क्वालिटी की जैविक खाद कम खर्च में तैयार कर सकते है। इस लेख मे हम मटका विधि से खाद बनाने के बारे मे जानकारी दे रहे है।



मटका खाद बनाने के लिए आवश्यक सामग्री

किसान भाईयो अच्छी किस्म की मटका खाद बनाने के लिए निम्नलिखित सामग्री की आवश्यकता होती है।
1-  15 लीटर गाय, भैंस का मूत्र
2-  250 ग्राम
3-  एक मिट्टी का मटका या प्लास्टिक का पात्र
4-  15 लीटर पानी
5-  गाय या भैंस का 15 किलो ताजा गोबर

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मटका खाद बनाने की विधि

किसान भाई ये पांचो सामग्री इकट्ठा करले। इसके बाद मटके मे 15 लीटर साफ पानी डाल कर उसमें 250 ग्राम गुड़ मिलाकर इसका अच्छी तरह से घोल तैयार करे। फिर मटके में गाय या भैंस का मूत्र डाल कर किसी लकड़ी की सहायता से हिला दीजिये। इसके बाद मटके में 5 लीटर गौमूत्र, 5 किलो गोबर  मिला दीजिये और एक लकड़ी की सहायता से दो मिनट तक सीधा और फिर उलटा घुमाइये। इसे क्रमवार दो बार करके सभी सामग्री अच्छी तरह मिला दीजिये। कुछ देर बाद 5 मिनट तक लकड़ी के डण्डे की सहायता से घुमाइये। और इसके बाद मटके का मुँह ढक्कन से बंद कर दीजिये और ढक्कन के ऊपर गोबर व मिट्टी लेप चढ़ा दीजिये। अब इस मटके को किसी छायादार जगह पर रखदे। करीब 7 से 10 दिन बाद मटका खाद तैयार हो जायेगी।



मटका खाद का प्रयोग कैसे करे।

किसान भाई मटका खाद का प्रयोग अपनी फसलो पर इसे छिड़क कर कर सकते है स्प्रे मशीन की सहायता से इसका छिड़काव फसल पर आसानी से किया जा सकता है।
फसल पर मटका खाद के छिड़काव के लिए किसान भाई 150 लीटर पानी मे इस मटका खाद को मिला कर 30 मिनट तक घुमाकर इसे अच्छी तरह से मिलाले। इसके बादा 1 बीघा खेत में इस घोल का छिड़काव करें।

कब करे फसलो पर मटका खाद का छिड़काव

किसान भाईयो वैसे तो आप किसी भी समय मटका खाद का प्रयोग अपनी फसल में कर सकते है। लेकिन अच्छे उत्पादन के लिए मटका खाद का पहला छिड़काव अपने खेत मे बुआई से दो दिन पहले करे। इसके बाद दूसरा छिड़काव फसल बुआई के 55 से 60 दिन बाद करे तथा तीसरा छिड़काव फसल पर फूल आने के समय करें।

कुछ ध्यान देने योग्य बाते

1- जब आपकी खाद तैयार हो जाए तब दो से तीन दिनों अंदर ही इस खाद का प्रयोग कर लें। अधिक दिनों तक रखी गयी मटका खाद का सही लाभ नही मिलता है।
2- फिर से प्रयोग हेतु जब आप दूसरा व तीसरा छिड़काव कर रहे हों तब फिर से मटका खाद को बनाएं।
3- जब मिट्टी में नमी हो तब ही आपको मटका खाद का प्रयोग करते समय ध्यान रखना चाहिए कि खेत मे पर्याप्त नमी बनी रहे।
4- अनाज वाली फसलो पर मटका खाद बुआई के 25 दिनों और 50 दिनों के बाद पानी के साथ मिलाकर इसका छिड़काव करें।
5- गोबर औऱ गौमूत्र 7 दिन से अधिक पुराना नही होना चाहिए।


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Friday, January 5, 2018

भिंडी की उन्नत खेती (ladyfinger) kisan help room



भिंडी

भारत के साथ-साथ पूरे विश्व मे भिंडी सब्जियों मे अपना प्रमुख स्थान रखती है। और भारतीय व्यंजनों में तो भिंडी की विशेषता ही अलग है। लोग इसे बड़े ही चाव से खाते है। इसे लेडीफिंगर के नाम से भी जाना जाता है। भिंडी स्वादिष्ट होने के साथ ही स्वस्थवर्दक भी है। मुख्य रुप से भिंडी में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट खनिज लवणों के अतिरिक्त विटामिन ए, सी थाईमीन एवं रिबोफ्लेविन भी पाया जाता है। भिंडी के फल में आयोडीन की मात्रा पायी जाती है। भिंडी  कब्ज रोगी के लिए विशेष गुणकारी होती है।
भिंडी के उत्पादन के लिए पूरे विश्व मे भारत का प्रथम स्थान है। भारत के लगभग सभी राज्यों में भिंडी की खेती की जाती है। इनमे से कुछ प्रमुख भिंडी उत्पादक राज्य है। उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखण्ड, गुजरात, महाराष्ट्र, हरियाणा, पंजाब, उत्तरप्रदेश और असम। पूरे भारत में भिंडी की खेती लगभग 498 हजार हैक्टेयर भूमि पर की जाती है। जिससे कुल 5784 हजार टन भिंडी का उत्पादन प्रतिवर्ष होता है।
भिंडी की खेती ग्राीष्मकालीन और वर्षाकालीन दोनो फसलो के लिए की जाती है। ग्रीष्मकाल में भिंडी की अगेती फसल लगाकर किसान भाई अधिक कमाई कर सकते है।
भिंडी की खेती के लिए जलवायु तथा मिट्टी
भिंडी की फसल के अच्छे उत्पादन के लिए गर्म मौसम अनुकुल माना जाता है। इसके बीजों के अच्छे अंकुरण के लिए 20 सेंटीग्रेड से कम का तापमान अनुकूल नही होता है। तथा 42℃ से अधिक तापमान पर भिंडी के फूल का परागण नहीं होता है और फूल नीचे गिर जाते है।



किसान भाईयो भिंडी की खेती सभी प्रकार की मिट्टी मे की जा सकती है। लेकिन हल्की दोमट मिट्टी जिसमें पर्याप्त मात्रा में जीवांश उपलब्ध हो तथा उचित जल निकास वाली मिट्टी भिंडी की खेती के लिए श्रेष्ठ मानी जाती है।

खेत की तैयारी

किसान भाईयो भिंडी की फसल की अधिक पैदावार लेने के लिए खेत को अच्छे से तैयार करना चाहिए। इसके लिए खेत मे 300 कुंतल गोबर की अच्छे से सड़ी हुई खाद डालकर खेत की दो-तीन बार गहरी जुताई कर मिट्टी को भूरभूरा बना लेना चाहिए। तथा पाटा चलाकर खेत को समतल कर लेना चाहिए।



भिंडी की उन्नत किस्में

किसान भाईयो बाजार मे भिंडी की बहुतसी उन्नत किसमे मौजूद है। इन्ही मे से कुछ प्रमुख किस्मो के नाम इस प्रकार है।
उन्नत किसमे-  पंजाब पदमनी, प्रभनी क्रांति, पी-7, अर्का अनामिका, अर्का अभय, काशी प्रगति, कशाई विभूति
संकर किस्मे-  वर्षा, विशाल, विजय, शीतला ज्योति, शीतला उपहार, सोनी-1001, क्लासिक-1002, मार्वल-1003, करिश्मा-1004, प्रभावा-225, म्रदुला-251, एमएएचवाई-64, भिंडी नं-10, एमएएचवाई-55, एमएएचवाई-28, ओएच-016, ओएच-152 आदि।
बीजोपचार-  ग्रीष्मकाल में ली जाने वाली फसल के लिए 18-20 कि.ग्रा. बीज प्रतिहेक्टर बुवाई के लिए पर्याप्त होता है। जबकि वर्षाकाल मे ली जाने वाली फसल की बढ़वार अधिक होने के कारण बीज की मात्रा कम रखनी चाहिए। इसके लिए 12-15 कि.ग्रा. बीज प्रति हेक्टर उपयोग करना चाहिए। भिंडी के बीज अधिक कठोर होते है। अतः ग्रीष्मकालीन फसल के लिए भिंडी के बीजों को बुवाई से पहले 24 घंटे तक पानी में डुबाकर रखने से अच्छा अंकुरण होता है। बीज उपचार हेतु तथा अंकुरण को बढ़ाने और रोगो से बचाने के लिए बीजो को 2gm कार्बेण्डाजिम12% + मेंकोजेब63% (सिक्सर, साफ)/ kg बीज की दर से उपचारित करें

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बीज की बुवाई

किसान भाईयो वेसे तो ग्रीष्मकालीन भिंडी की बुवाई फरवरी-मार्च के महीने में की जाती है। लेकिन बाजार मे अच्छे भाव प्राप्त करने के लिए अगेती फसल के लिए कुछ क्षेत्र में प्रगतिशील किसान 15 जनवरी के बाद ही भिंडी की बुवाई कर लेते है। यदि भिंडी की फसल लगातार लेनी है तो तीन सप्ताह के अंतराल पर फरवरी से जुलाई के मध्य अलग-अलग खेतों में भिंडी की बुवाई  कर सकते है।
ग्रीष्मकाल में ली जाने वाली भिंडी की फसल के लिए इसके बीजों की बुवाई कतारों में करनी चाहिए। भिंडी बुवाई के समय ध्यान रखे कि कतार से कतार दूरी 25 से 30 सें.मी. तथा कतार में पौधे से पौधे की दूरी 15 से 20 से.मी. होनी चाहिए।वर्षाकालीन भिंडी के लिए कतार से कतार दूरी 40-45 सें.मी. तथा कतारों में पौधे की बीच 25-30 सें.मी. का अंतर रखना उचित होता है।

खाद तथा उर्वरक

भिंडी की अच्छी फसल प्राप्त करने के लिए इसकी फसल मे उचित मात्रा तथा सही समय पर उर्वरको का उपयोग करना चाहिए। इसमे नत्रजन 60 किलोग्राम, स्फुर 30 किलोग्राम और पोटाश की 50 किलोग्राम मात्रा प्रति हेक्टर की दर से फसल में देना चाहिए। नत्रजन की आधी मात्रा तथा स्फुर व पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई के समय ही बीजो के साथ भूमि में देना चाहिए। नत्रजन की शेष बची मात्रा को दो भागों में 30-40 दिनों के अंतराल पर देना चाहिए।

सिंचाई

किसान भाई बुवाई के समय ये ध्यान रखे कि यदि भूमि में पर्याप्त नमी नही है तो बुवाई से पहले ही खेत की सिंचाई करनी चाहिए। इसके बाद पौधे उग आने पर  गर्मी के मौसम में प्रत्येक पांच से सात दिन के अंतराल पर सिंचाई आवश्य करते रहे। वर्षाकालीन फसल के लिए मौसम को ध्यान में रखकर आवश्यकतानुसार खेत की सिंचाई करनी चाहिए। वर्षाकालीन फसल में अधिक  वर्षा के समय उचित जलनिकास का प्रबंध भी करना चाहिए।

खरपतवार नियंत्रण

भिंडी मे यदि शुरुआती 15-20 दिनों के अंदर ही खरपतवार पर नियंत्रण कर लिया जाए तो अच्छा फसल उत्पादन होगा। इसके बाद नियमित निंराई-गुड़ाई कर के खेत मे खरपतवार नही उगने देने चाहिए। खरपतवार नियंत्रण हेतु वीडर या खुरपी आदि का प्रयोग करे या फिर रासायनिक नींदानाशकों का भी प्रयोग किया जा सकता है। इसके लिए बासालिन को 1.2 कि.ग्रा. सक्रिय तत्व को प्रति हेक्टर की दर से पर्याप्त नम खेत में बीज बोने के पूर्व मिलाने से प्रभावी खरपतवार नियंत्रण किया जा सकता है। इसके अलावा पेंडिमिथलीन,और एलकलोर जैसे खरपतवार नाशियों का प्रयोग भी किसान भाई कर सकते है।



फलो कि तुड़ाई तथा प्राप्त उपज

भिंडी मे कई प्रकार की किस्मे पाई जाती है। इन्ही किस्मो की गुणता के अनुसार 45-60 दिनों में पौधों पर फल तैयार होने लगते है। किसान भाई सावधानी पूर्वक इन फलों की तुड़ाई प्रारंभ करदे। इसके बाद 4 से 5 दिनों के अंतराल पर भिंडी की नियमित तुड़ाई की जानी चाहिए। ग्रीष्मकाल में ली जाने वाली भिंडी की फसल का उत्पादन 60-70 क्विंटल प्रति हेक्टर तक होता है।

भिंडी मे लगने वाले रोग तथा इनसे बचाव

भिंडी मे कई प्रकार के प्रमुख रोग लग सकते है जैसे पीत शिरा मौजक, चूर्णिल आसिता तथा कुछ नुकसानदायक कीट जैसे प्ररोेह, फल छेदक और जैसिड आदि का भी प्रकोप देखने को मिलता है। इनकी पहचान तथा इन से बचाव के उपचार इस प्रकार है।

1- पीत शिरा रोग

पीत शिरा रोग भिंडी की फसल को भारी नुकसान पहुचाने वाला प्रमुख रोग है। इस रोग के प्रकोप के कारण पौधों की पत्तियों की शिराएं सबसे पहले पीली पड़ने लगती है। फिर पत्तियाँ पूरी तरह पीली होजाती है और इसके साथ ही फल भी पीले रंग के हो जाते है और पौधे की बढ़वार रुक जाती है। वर्षा ऋतु में इस रोग का संक्रमण अधिक देखा जाता है।

उपचार

 किसान भाई अपने भिंडी के खेत का नियमित भृमण करे और अपने खेत मे रोग के लक्षण वाले पौधे दिखाई देते ही उन्हें खेत से उखाड़ कर नष्ट कर दे। ताकि फसल पर रोग के फैलाव को नियंत्रित किया जा सके। यह विषाणु जनित रोग है जो एक सफेद मक्खी (कीट) द्वारा स्वस्थ पौधों में फैलाया जाता है।
इस रोग संवाहक कीट (सफेद मक्खी) के नियंत्रण के लिए किसान भाई आक्सी मिथाइल डेमेटान 1 मिली प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव कर सकते है। इसके छिड़काव से रोग का प्रसारण कम होता है। इसके साथ ही सावधानी के तौर पर किसान भाई को पीतशिरा रोग प्रतिरोधी किस्मों जैसे अर्का अभय, अर्का अनामिका, परभणी क्रांति इत्यादि का चुनाव बुवाई करते समय करना चाहिए। फसल के चारों ओर 2-3 कतार मक्का की फसल की बुवाई करने से भी रोग का फैलाव बहुत हद तक नियंत्रित किया जा सकता है।

2-  चूर्णिल आसिता

चूर्णिल आसिता रोग भी भिंडी की फसल को भारी नुकसान पहुचाने वाला प्रमुख रोग है। इस रोग में भिंडी की पुरानी निचली पत्तियों पर सफेद चूर्ण युक्त हल्के पीले धब्बे पड़ने लग जाते है। कुछ दिनों बाद सफेद चूर्ण वाले ये धब्बे काफी तेजी से फैलाव करते है। इस रोग पर समय से नियंत्रण न करने पर भिंडी की पैदावार 30 प्रतिशत तक कम हो सकती है।

उपचार

किसान भाईयो चूर्णिल आसिता रोग के नियंत्रण के लिए घुलनशील गंधक 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर इसका फसल पर 2 या 3 बार 12-15 दिनों के अंतराल पर छिड़काव करना चाहिए।

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3-  प्ररोह एवं फल छेदक

वर्षाकालीन खेती के अंतर्गत ली जाने वाली भिंडी की फसल पर इस कीट का प्रकोप अधिक देखा जाता है।  प्रारंभिक अवस्था में इल्ली पौधे के कोमल तने में छेद करती है जिससे पौधा सूख कर मर जाता है। फूलों पर इस इल्ली के आक्रमण से फल लगने से पहले ही फूल सुख कर गिर जाते है। पौधों पर फल लगने के बाद इल्ली फलो मे छेद बनाकर उनहे अंदर ही अंदर खाती है। जिससे फल मुड़ जाते हैं और खाने योग्य नहीं रहते है। ऐसी अवस्था मे किसान को भारी नुकसान उठाना पड़ता है। क्यों कि ऐसी फसल के बाजार मे खरीदार नही होते।

उपचार

फल छेदक से ग्रस्त फलों और तने को काटकर नष्ट कर देना चाहिए।
कीटनाशकों से उपचार हेतु क्विनॉलफास 25 ई.सी. 1.5 मिली लीटर या इंडोसल्फान 1.5 मिली लीटर प्रति लीटर पानी की दर से कीट प्रकोप की मात्रा के अनुसार 2-3 बार छिड़काव करे। फल बनने के उपरांत कीट प्रकोप होने पर फेनवेलरेट 0.5 मिली प्रति लीटर पानी में घोलकर प्रयोग करे।

4-  रेड स्पाइडर माइट

यह माइट पौधो की पत्तिायों की निचली सतह पर बहुत भारी संख्या में कॉलोनी बनाकर रहते हैं। यह अपने मुखांग से पौधों की पत्तिायों की कोशिकाओं में छिद्र बनाता हैं । और इस छिद्र से जो द्रव निकलता है उसे यह माइट चूसता हैं। जिसके कारण पत्तिायां पीली होकर टेढ़ी मेढ़ी हो जाती हैं। इसका अधिक प्रकोप होने पर संपूर्ण पौधा ही सूख कर नष्ट हो जाता हैं।

उपचार

इसकी रोकथाम के लिए किसान भाई डाइकोफॉल 5 ईसी. की 2.0 मिली लीटर मात्रा प्रति लीटर पानी अथवा घुलनशील गंधक 2.5 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में मिलाकर फसल पर आवश्यकतानुसार छिडकाव करते रहे।

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Thursday, January 4, 2018

पारम्परिक खेती छोड़ अपनाई फूलो की खेती तो 40 लाख की होने लगी कमाई



जहा एक तरफ हमारे किसान भाई खेती से होने वाली आय को लेकर काफी परेशान है और कर्ज में डूबते जा रहे है वही कुछ उन्नत किसान ऐसे हालात में भी उम्मीद की एक किरण है। जो किसानों को हिम्मत और कुछ नया करने के लिए प्रेरित करते है। ऐसे ही एक उन्नत किसान है खेडी मल्लाह गांव के रहने वाले किसान हरबंस सिंह। उन्नत किसान हरबंस सिंह ने 1999 में ही पारंपरिक खेती को छोड़कर फूलों की खेती अपनाई
और आज हरबंससिंह की आंखों में सफलता की चमक आसानी से देखी जा सकती है। करीब 10 एकड़ में फूलों की आधुनिक खेती करने वाले उन्नत किसान हरबंस सिंह कहते हैं कि उन्होंने ग्रैजुएशन तक पढ़ाई की लेकिन इसके बावजूद भी वह दूसरों की तरह सरकारी नौकरी के पीछे नहीं भागे। बल्कि उन्होंने अपने पारिवारिक पेशे को ही चुनाऔर आज सालाना 40 लाख रुपए की कमाई कर रहे हैं।



हरबंस सिंह के पिता हाकम सिंह भी अपने बेटे की इस सफलता से खुश हैं। हाकिम सिंह बताते हैं कि किस तरह से शुरूआती दो-तीन सालो में उन्हें कई मुश्किलो का सामना भी करना पड़ा। लेकिन उनके पुत्र ने हिम्मत नही हरि और अब सबकुछ ठीक है। वह बताते है कि पांच एकड़ जमीन उनकी अपनी पुश्तेनी जमीन है और पांच एकड़ जमीन उन्होंने ठेके पर ले रखी है। जिस पर फूलो की खेती की जाती है। वह अपने खेतों मे फूलों की अलग-अलगकिस्में जैसे मैरी गोल्ड , जाफरी, गुलदाउदी आदि की खेती करते हैं। जिनकी मांग बाजार मे बनी रहती है।

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हरबंस सिंह बताते है कि पहले वह पारम्परिक खेती ही करते थे। जिसमें गेहूं और धान की फसल उगाई जाती थी। इस पारम्परिक खेती से उन्हें 5 लाख रुपए ही प्राप्त होते थे। लेकिन फूलो फसल से अब उनको अच्छी आमदनी हो रही है।

हरबंस सिंह ने बताया कि पहले पेशेवर खेती से कमाई कुछ खास नहीं हो रही थी। फिर उन्होंने समय के साथ-साथ नई तकनीकों को अपनाने के बारे में विचार किया। और इसी विचार से नई तकनीकों को अपनाते हुए उन्होंने फूलों की खेती की शुरुआत की और आज एक सफल किसान के रूप में हमारे सामने है।
हरबंस सिंह कहते है कि खेती में खर्चे बहुत बढ़ गए हैं। इसलिए आमदनी का भी उसी अनुपात मे बढ़ाना  जरूरी था। और यह तभी संभव हो सका जब पारंपरिक खेती को छोड़कर नई तकनीक अपनाई गयी।

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हरबंस ने कुछ परेशानियों के बारे में बताते हुए कहा कि दो साल से फूलों की खेती करने वाले किसानों को जो सब्सिडी सरकार देती थी अब वह बंद हो गई है। जिससे फूलो की खेती करने वाले किसानों पर इसका बुरा असर पड़ा है। अगर सरकार आर्थिक मदद देना फिर शुरू करदे तो दूसरे किसान भी फूलों की खेती की तरफ आकर्षित होंगे। तथा फूलों की खेती से पंजाब के पानी की बचत के साथ साथ बिजली की भी बचत होगी। इस खेती पर मौसम का प्रभाव भी कम रहता है।
खेतीबाड़ी विभाग से प्रगति शील खेती के लिए सम्मानित हो चुके हाकम सिंह ने कहा कि उनके अलावा भी यहा के कई दूसरे किसान जन्मे भरपूर सिंह, बलबीर सिंह, महिंदर सिंह, परगट सिंह तथा जसवीर सिंह आदि भी फूलों की खेती करके अच्छी कमाई कर रहे हैं। उन्होंने पंजाब सरकार से पटियाला में ही फूलों की मंडी स्थापित करने की अपील की, ताकि यहां के किसानों को फूल बेचने के लिए लुधियाना या दिल्ली
जाने की ज़रूरत न पड़े।

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मौसम में आये बदलाव का सब्जियों के दामो पर असर:अब टमाटर करेगा जेब ढीली



नई दिल्ली: मौसम के मिजाज बदलते ही कड़ाके की ठंड का असर जन जीवन पर ही नहीं पड़ रहा। बल्कि सब्जियां भी अब इससे अछूती नहीं रहीं।  सब्जी मंडियों पर नजर रखने वाले जानकारों का कहना है कि अगर मकर संक्राति तक ऐसे ही मौसम ठंडा बना रहा तो सब्जियो के दाम पर भी इसका बुरा आसार पड़ेगा। सब्जी वेलफेयर आढ़त एसोसिएशन के पदाधिकारियों से मिली जानकारी के अनुसार ऐसे मौसम के चलते आलू और टमाटर की आवक मंडियों मे घटेगी। इसलिए थोक और खुदरा दोनों बाजार में आलू और टमाटर के दाम और बढ़ेंगे ।  पुराने आलू के अच्छे दाम नहीं मिलने के कारण किसान इन आलुओ को अपने जानवरों को खिलाने को मजबूर थे। लेकिन, नए साल पर बदले मौसम के कारण अब किसानों के चेहरे पर राहत नजर आरही है। क्योंकि, मकर संक्रांति तक ऐसा ही मौसम बना रहता है। शीत लहर और कोहरे का कहर बना रहता है। तो इससे आलू और टमाटर की कीमतों में अच्छी खासी बढ़ोतरी होगी।



सब्जी वेलफेयर आढ़त एसोसिएशन के पदाधिकारियों का कहना है कि फिलहाल आलू चार से पांच रुपये प्रति किलोग्राम और टमाटर आठ से नौ रुपये प्रति किलोग्राम थोक के भाव से मंडियों मे बिक रहा है। लेकिन, यही मौसम बना रहता है तो आलू की कीमतों मे 4 से 5 रुपये प्रति किलोग्राम और टमाटर की कीमतों मे 5 से 6 रुपये प्रति किलोग्राम थोक भाव मे उछाल आयेगा।

सिर्फ 20 रुपये का वेस्ट डीकम्पोज़र साबित हो रहा है खेती के लिए वरदान

वर्मीकम्पोस्ट बंजर भूमि को भी बना रहा है उपजाऊ, कैसे घर पर ही करे तैयार?

सब्जी वेलफेयर आढ़त एसोसिएशन के महामंत्री हरिओम गुप्ता जी ने जानकारी दी कि अब तक किसान को आलू और टमाटर के मनमाफिक दाम नहीं मिल रहे हैं। जिसके चलते किसान काफी परेशान है। पर अब किसानों को अच्छे दाम मिलेंगे अगर ऐसा ही मौसम मकर संक्रांति तक बना रहा है तो। उन्होंने कहा कि अब आलू और टमाटर के दामों में वृद्धि होगी।

इसके साथ ही सब्जी वेलफेयर आढ़त एसोसिएशन के संरक्षक सुशील कुमार गुप्ता का कहना है कि कोहरे और शीतलहर के चलते आलू और टमाटर की आवक मंडियों मे घटेगी। इसके साथ ही कोहरे से फसलों को भी नुकसान होगा। और इसका असर सीधे बाजार भाव पर पड़ेगा। सब्जियों के दाम बढेंगे तथा ग्राहकों को अपनी जेब अधिक ढीली करनी पड़ेगी।

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