Tuesday, January 16, 2018

ब्रोकली की उन्नत खेती

  • ब्रोकली



ब्रोकोली फूल गोभी की तरह दिखने वाली एक स्वादिष्ट और प्रोटीन से भरपूर हरी सब्जी है। इसकी खेती भी फूलगोभी की खेती की तरह ही की जाती है। और ब्रोक्ली के बीज तथा पौधे भी देखने में लगभग फूल गोभी के जैसे ही होते है। ब्रोकोली का मुख्य भाग जो खाने के लिए उपयोग में लाया जाता है वह बहुत छोटे-छोटे हरे फूल कलिकाओं का एक गुच्छा होता है। जिसे फूल खिलने से पहले ही पौधों से काटकर अलग कर लिया जाता है। फूल गोभी में जहां एक पौधे से सिर्फ एक ही फूल मिलता है वही ब्रोकोली के पौधे से एक मुख्य गुच्छा काटने के बाद भी इसी पौधे से कुछ अन्य शाखायें निकलती है।जिनसे बाद में ब्रोकोली के छोटे गुच्छे बेचने अथवा खाने के लिये प्राप्त हो जाते है। ब्रोकली दिखने मे लगभग फूल गोभी की तरह ही होती है लेकिन इसका रंग हरा होता है इसलिए इसे हरी गोभी भी कहते है उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्रों में जाड़े के दिनों में ब्रोकली की खेती बड़ी सुगमता पूर्वक  की जा सकती है जबकि हिमाचल प्रदेश , उत्तरांचल और जम्मू कश्मीर में में इनके बीज भी तैयार किये जा सकते है।



ब्रोकली के लिए उत्तम जलवायु

किसान भाईयो ब्रोकली की फसल के अच्छे उत्पादन के लिए ठंडी और आद्र जलवायु की आवश्यकता होती है। अच्छी पैदावार के लिए दिन अपेक्षाकृत छोटे और राते बड़ी होनी चाहिए। ऐसी जलवायु मे ब्रोकली के फूल की बढ़वार अच्छी होती है। क्योंकि फूल तैयार होने के समय तापमान अधिक होने से फूल छितरेदार, पत्ते दार तथा पीले पड़ जाते है।

ब्रोकली की खेती के लिए मिट्टी का चुनाव

किसान भाईयो ब्रोकली की खेती लग-भग सभी प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है लेकिन अच्छी फसल और अधिक उत्पादन के लिये दोमट या हलकी बलुई दोमट जैविक जमीनें इस के लिए सब से अच्छी मानी जाती हैं। जिनका पीएच मान 6.0-7.5 के बीच का हो। हल्की रचना वाली भूमि में भी पर्याप्त मात्रा में जैविक खाद डालकर ब्रोकली की लाभदायक खेती की जा सकती है।

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उन्नत प्रजातियाँ

किसान भाईयो ब्रोकली की तीन मुख्य प्रजाति होती है। 

1 श्वेत

2 हरी
3 बैंगनी

इनमे हरे रंग की गंठी हुई शीर्ष वाली किस्मे बाजार मे अधिक पसंद की जाती है। इनमे नाइन स्टार , पेरिनियल,इटैलियन ग्रीन स्प्राउटिंग,या केलेब्रस,बाथम 29 और ग्रीन हेड ब्रोक्ली की प्रमुख किस्मे है।

संकर किस्मे

पाईरेट पेकमे, प्रिमिय क्राप, क्लीपर , क्रुसेर, स्टिक व ग्रीन सर्फ़ प्रमुख किस्मे है।
अभी हाल भारतीय कृषि अनुसन्धान संस्थान क्षेत्रीय केंद्र कटराई द्वारा ब्रोकली की के.टी.एस.9 किस्म भी विकसित की गई है। जिसके पौधे मध्यम उचाई के होते है। तथा पत्तियां गहरी हरे रंग की होती है। इसका शीर्ष सख्त और छोटे तने वाला होता है। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान नई दिल्ली ने हाल ही में पूसा ब्रोकोली 1 क़िस्म की खेती के लिये सिफ़ारिश की है।

बीज बुवाई का समय

किसान भाईयो उत्तर भारत के मैदानी भागो में ब्रोकोली की फसल उगाने का सही समय ठण्ड का मौसम होता है। ब्रोकली के बीज के अंकुरण तथा पौधों को अच्छी वृद्धि के लिए तापमान लगभग 20 से 25 डिग्री सेल्सियस होना चाहिए। इसकी नर्सरी तैयार करने का सही समय अक्टूम्बर का दूसरा पखवाडा माना जाता है। पर्वतीय क्षेत्रों में जो क़म उचाई वाले क्षेत्र है उनमें  सितम्बर- अक्टूम्बर , मध्यम उचाई वाले क्षेत्रों में अगस्त सितम्बर तथा अधिक़ उचाई वाले क्षेत्रों में मार्च- अप्रैल में ब्रोकली के बीजो की बुवाई की जाती है।

बीज की मात्रा

गोभी की तरह ही ब्रोकली के बीज भी बहुत छोटे होते है। एक हेक्टेअर मे फसल बुवाई के लिए जो पौध तैयार की जाएगी उसके लिये लगभग 375 से 400 ग्राम बीज की मात्रा पर्याप्त होती है।



पौध तैयार करना

किसान भाईयो ब्रोकोली की भी गोभी की तरह ही पहले से पौध (नर्सरी) तैयार करते है। और बाद में इस पौध का खेत मे रोपण किया जाता है। अच्छे और स्वस्थ पौधे उगाने के लिए 3 फिट लम्बी और 1 फिट चौड़ी तथा जमीन की सतह से 1.5 से.  मी. उची क्यारीयो में बीज की बुवाई की जाती है। क्यारी की 2-3 बार जुताई करके मिट्टी को भुरभुरा बनाकर अच्छी प्रकार से तैयार करले। इन क्यारियों मे सड़ी हुई गोबर की खाद अथवा वर्मीकम्पोस्ट मिलाकर क्यारी को समतल करले। इसके बाद बीज को पंक्तियों में 4-5 से.मी. की दुरी पर 2.5 से.मी. की गहराई पर बुवाई करते है। बीज बुवाई के बाद क्यारीयो को घास-फूस या फिर जुट की हल्की पर्त से ढक देते है।
क्यारीयो की समय-समय पर सिचाई करते रहते है। जैसे ही पौधे मिट्टी से बाहर निकलना शुरू होते है क्यारी के ऊपर से घास-फूस अथवा जूट को हटा दिया जाता है। समय-समय पर निराई-गुड़ाई करके क्यारियों से खरपतवार हटाते रहे तथा नर्सरी में पौधों को कीटों से बचाव के लिए नीम का तेल या गोमूत्र का प्रयोग करें।

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पौध रोपाई

पहले से तैयार नर्सरी में जब पौधे करीब 4 सप्ताह के हो जायें तो इनकी रोपाई तैयार खेत में की जाती है। खेत मे पौधों को कतार में लगाया जाता है और कतार से कतार की दूरी 15 से 60 से. मीटर तथा पौधे से पौधे के बीच 45 सें०मीटर की दूरी रखी जाती है। रोपाई करते समय मिट्टी में पर्याप्त नमी बनी रहनी चाहिए तथा पौध रोपाई के तुरन्त बाद खेत की हल्की सिंचाई अवश्य करें।



खाद तथा उर्वरकों की मात्रा

ब्रोकली की अच्छी पैदावार लेने के लिए खेत मे खाद व उर्वरकों की मात्रा मिट्टी परीक्षण के आधार पर देना सही रहता है। अगर मिट्टी परीक्षण नही किया है तो ब्रोकली की फसल का अधिक उत्पादन लेने के लिए
गोबर की अच्छी तरह सड़ी खाद 20-30 टन प्रति हेक्टर

नाइट्रोजन, 80-100 किलोग्राम

फास्फोरस 45-50 किलोग्राम

पोटाश 70 किलोग्राम

प्रति हेक्टेयर की दर से खाद की आवश्यकता होती है।गोबर की खाद अथवा वर्मीकम्पोस्ट, फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा अंतिम जुताई पर खेत की तैयारी के समय फसल रोपाई से पहले ही मिट्टी में अच्छी तरह मिला देना चाहिए। नाइट्रोजन को 3 भागों में बांट कर फसल रोपाई के 25, 45 और 60 दिनों बाद फसल मे देना चाहिए। नाइट्रोजन को दूसरी बार लगाने के बाद पौधों पर मिट्टी की परत चढ़ाना सही रहता है।

निराई-गुड़ाई तथा फसल की सिंचाई

किसान भाईयो ब्रोकोली की पौधों तथा इनकी जड़ो की अच्छी बढ़वार के लिए के लिए समय-समय पर खेत की निराई-गुड़ाई करके खरपतवार को निकालते रहना चाहिए। गुड़ाई करने से पौधों की बढ़वार तेज होती है गुड़ाई के उपरांत पौधे के पास मिटटी चढ़ा देने से पौधे पानी देने पर गिरते नहीं है।
मिट्टी मौसम तथा पौधों की बढ़वार को ध्यान में रखकर ही फसल की सिंचाई करनी चाहिए। सामान्यतः इस फ़सल में लगभग 10-15 दिन के अन्तर पर हल्की सिंचाई की आवश्यकता होती है।

प्रमुख कीट और इनकी रोकथाम

किसान भाईयो ब्रोकली की फसल के शुरुआती दिनों में गिडार आरा मक्खी, तंबाकू की सूंड़ी आदि कई कीटों का हमला होता है। इन की रोकथाम के लिए मैलाथियान 50 ईसी या मिथाइल पैराथियान 50 ईसी की 10-15 मिलीलीटर मात्रा 10 लीटर पानी में घोल बनाकर जरूरत के मुताबिक 2-3 बार छिड़काव करना चाहिए।

प्रमुख रोग तथा इनसे बचाव

ब्रोकली की फसल में काला सड़न (ब्लैक राट) व पत्ती धब्बा आदि रोग ज्यादा अधिक प्रभाव होता हैं।
काला सड़न -  इस रोग में पत्तियों के किनारे पर वी आकार के मुरझाए हुए धब्बे दिखाई देते हैं। रोग के बढ़ने पर पत्तियों की शिराओं का रंग काला व भूरा होने लगता है।
इस रोग की रोकथाम के लिए पौध लगाने से पहले 3 फीसदी फार्मेलीन के घोल से क्यारी को उपचारित कर के काली पालीथीन से तुरंत ढक कर चारों ओर से दबा देंना चाहिए।
पत्ती धब्बा रोग - इस रोग की वजह से पत्तियों पर अनेक छोटेछोटे गहरे रंग के धब्बे बन जाते है। इन धब्बों के बीच के भाग पर नीलापन लिए हुए फफूंदी पाई जाती है।
पत्ती धब्बा रोग की रोकथाम के लिए 2.5 किलोग्राम मैंकोजेब प्रति हेक्टेयर की दर से 600 लीटर पानी में घोल कर अच्छे से फसल पर छिड़काव करें। ब्रोकली की बढि़या फसल लेने के लिए एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन को भी अपनाने की जरूरत है।



फसल कटाई व प्राप्त उपज

पौध रोपाई के 60 से 65 दिन बाद फसल में जब हरे रंग की कलियों का मुख्य गुच्छा बन कर तैयार हो जाए तो उसे तेज चाकू या दरांती से ध्यानपूर्वक काटना चाहिए। ध्यान रखें कि कटाई के समय गुच्छा खूब गुंथा हुआ व कसा हो और उस में कोई कली खिलने न पाए। ब्रोकली की अगर तैयार होने के बाद देर से कटाई की जाएगी तो वह ढीली हो कर बिखर जाएगी और उस की कली खिल कर पीला रंग दिखाने लगेगी। ब्रोकली के ऐसे खिले हुए गुच्छो का बाजार मे अच्छा भाव नही मिलता और किसान को हानि होती है।
ब्रोकली के मुख्य गुच्छे को काटने के बाद इसी पौधों में दूसरी नई-नई शाखाएं निकल आती हैं। इन शाखाओं पर कई छोटे गुच्छे लगते है। पौधे का मुख्य गुच्छा लगभग 200-400 ग्राम तक होता है। और इसकी की कटाई के बाद दूसरी नई सखाओं से प्राप्त छोटे गुच्छे 100-150 ग्राम तक के होते हैं। इस प्रकार से 1 पौधे से लगभग 800-1000 ग्राम या 1 किलोग्राम तक ब्रोकली किसान को प्राप्त होती है। ब्रोकली की अच्छी फसल से प्रति हेक्टेयर करीब 160-180 क्विंटल उपज मिल जाती है।

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