Monday, February 5, 2018

बीमारियो से बचना है तो फैमली डॉक्टर नही फैमली किसान है ज़रूरी



स्वाभाविक मृत्यु से अलग यदि देखा जाए तो मृत्यु का एक बड़ा कारण है बीमारी और इनमें से कैंसर का स्थान दूसरे नंबर पर आता है। अगर आकड़ो को देखा जाये तो वैश्विक मृत्युसंख्या का लगभग 16% यानी हर 6 में से 1 व्यक्ति की मौत कैंसर की वजह से होती है। ये आंकड़े कितने खतरनाक है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि विश्व मे लगभग 90 लाख मृत्यु प्रतिवर्ष केंसर के कारण होती है। अगर भारत के संदर्भ में देखा जाये तो यह आंकड़ा लगभग 6 लाख मृत्यु प्रतिवर्ष है। यानी हर एक मिनट में एक व्यक्ति की मृत्यु कैंसर के कारण हो रही है।



आकड़ो से पता चलता है कि विकासशील देशों में 30 प्रतिशत से भी कम लोगों को कैंसर के इलाज के लिए सही चिकित्सा सुविधाएं मिल पाती हैं। वहीं दूसरी तरफ विकसित देशों में 90 प्रतिशत से अधिक लोगों तक समुचित चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध हैं। इससे यह स्वाभाविक निष्कर्ष निकल आता है कि कैंसर से मरने वाले लोगों में अधिकांश जनसंख्या विकासशील और गरीब देशों की है। कैंसर से होने वाली मृत्यु में हर 10 में से 7 व्यक्ति विकासशील या गरीब देशों से ही आते हैं।
इंडियन कॉउन्सिल ऑफ मेडिकल रिसर्च की रिपोर्ट के अनुसार 2016 में भारत में वार्षिक नए कैंसर मरीजों की संख्या साढ़े चौदह लाख होने का अनुमान किया गया था। इस रोग की भयावहता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 2020 तक साढ़े 17 लाख से अधिक नए मरीज इस आंकड़े में जुड़ने जाएंगे। ऐसा अनुमान है कि वर्तमान में लगभग 25 लाख से अधिक लोग भारत मे कैंसर की क्रांतिक अवस्था से गुजर रहे हैं।
शोध बताते है कि कैंसर के नए मरीजों में लगभग आधे मरींज ऐसे है जिनमे कैंसर की रोकथाम उचित खानपान और जीवनशैली में बदलाव लेकर की जा सकती है। लेकिन ये तभी सम्भव है जब केंसर का पता कैंसर की प्रारंभिक अवस्था मे ही चल जाये। लेकिन ऐसा होता नही है। सबसे चिंतनीय पहलू यह है कि इन मरीजों में हर 8 में से केवल 1 मरीज ही प्रारंभिक अवस्था मे चिकित्सीय परीक्षण और निदान हेतु अस्पतालों तक पहुंच पाता है।

कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी का कारण क्या है?

कैंसर के कारणों में तंबाकू का सेवन प्रमुख माना जाता है। इसके बाद जो मुख्य कारण है वह है हमारा खान-पान।
आज हमारे भोजन में जिस तरह से रासायनिक खादों, कीटनाशकों और भारी धातुओं के अवशेष मिल रहे हैं वही इस रोग को तेजी से जन्म दे रहे हैं। शहरों के सीवरेज के दूषित पानी से सिंचाई करके उगाई जाने वाली सब्जियों में भारी तत्वों की उपस्थिति भी इस रोग का एक प्रमुख कारण है।
इसके अतिरिक्त डिब्बाबंद खानों में भोज्य पदार्थ को सुरक्षित रखने के लिए मिलाया जाने वाला परिरक्षक हो या मिठाइयों और अन्य खाद्य पदार्थों को आकर्षक रंग देने के लिए मिलाया जाने वाला रंग। ये सभी संश्लेषित रसायन हमारे लिए कैंसर की तरफ जाने की राह आसान करते हैं।
कैंसर होने के कारण और भी बहुत से है और इनमे से अधिकांश कारण आधुनिकता की देन हैं। अगर इनके रासायनिक विश्लेषण पर जाएंगे तो पोस्ट बहुत लंबी हो जाएगी। बस ये समझ लीजिए कि आपकी थाली तक पहुंचने वाले खाद्य पदार्थ की मनमोहक सूरत दिखने में आकर्षक भले ही हो पर अब उसकी सीरत यानी उसके अंदर क्या है.. यह भी पहचानने का समय आ गया है।


अभी ज्यादा तकनीकी और वैज्ञानिक पहलुओं से अलग बस आसान भाषा मे यह समझ लीजिए कि इस जानलेवा बीमारी के मुख्य कारणों में से एक कारण आपके मुंह से होकर जाता है। इसलिए अब जब भी आपकी थाली में कुछ आये, खाने के पहले सुनिश्चित कीजिये कि आप जो खा रहे हैं वो कहीं आपको कैंसर की तरफ तो नही धकेल रहा।
कैंसर के साथ-साथ और भी कई बीमारियां हमारे खान-पान से ही हो रही है।


आज किसान भी आय को लेकर परेशान है कर्ज के बोझ से दबा जा रहा है। अपनी आय को बढ़ाने के लिए ही किसान अधिक उत्पादन करना चाहता है। जो जहरीले खाद और दवाओं के अधिक प्रयोग से ही सम्भव भी हो रहा है।
खाद्य पदार्थो मे इस जहर को कम करने के लिए हमे अब फेमली किसान की ज़रूरत है जो हमे जैविक तरीके से फल और सब्जियां उगाकर दे। हम कुछ अधिक पैसा देकर जहरमुक्त खाद्य पदार्थ किसानों से ले सकते है इससे किसानों को भी लाभ मिलेगा और हमे अच्छी हेल्थ

जीवामृत फसल उत्पादन बढ़ाने के साथ ही मिट्टी को भी उपजाऊ बनाता है।

नाडेप विधि से किसान कम समय मे अच्छी किस्म की जैविक खाद तैयार कर सकते है।
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