Wednesday, December 27, 2017

नाडेप कम्पोस्ट: किसान हेल्प रूम

  • नाडेप कम्पोस्ट



किसान भाईयो जैसा कि आप सब जानते ही हो जैविक कम्पोस्ट बनाने की कई विधियां हमारे देश मे प्रचलित है।इन्ही सब विधियों मे से एक प्रमुख विधि है। नाडेप विधि। यह विधि ग्राम पुसर, जिला यवतमाल, महाराष्ट्र के निवासी नारायण देवराव पण्ढ़री पांडे जी ने विकसित की थी। इसलिये इस विधि का नाम नादेप विधि (या अंग्रेजी में नाडेप) रखा गया हैं। नाडेप कम्पोस्ट विधि की विशेषता यह है, कि इस प्रक्रिया में जमीन पर ही टांका बनाया जाता है। नाडेप विधि में कम से कम गोबर का प्रयोग करके अधिक मात्रा में अच्छी किस्म की खाद तैयार की जा सकती है। नाडेप विधि मे टांके को भरने के लिए गोबर (देशी गाय का हो तो ज्यादा अच्छा है), कचरा (बायोमास) और बारीक छनी हुई मिट्टी की आवश्यकता होती है। जीवांश को 90 से 120 दिन पकाने में वायु संचार प्रक्रिया का उपयोग किया जाता है। इस विधि द्वरा तैयार की गई जैविक खाद में प्रमुख रूप से 0.1 से 1.5 नत्रजन, 0.5 से 0.9 स्फुर (फास्फोरस) तथा 1.2 से 1.4 प्रतिशत पोटाश के अलावा अन्य सूक्ष्म पोषक तत्व भी पाये जाते है। जो हमारी भूमि को उपजाऊ बनाने के साथ-साथ अच्छी फसल पैदावार के लिए भी आवश्यक है।
नाडेप तीन प्रकार के बनाये जाते हैं।

पक्का नाडेप


कम्पोस्ट बनाने के लिए नाडेप टांका


किसान भाइयों नाडेप विधि से जैविक खाद बनाने के लिए पक्का नाडेप सब से अच्छा तरीका है। पक्के नाडेप ईंटों से बनाये जाते हैं। इस प्रकार के नाडेप टांके का आकार 12 फीट लम्बा 5 फीट चौड़ा और 3 फीट ऊँचा अथवा 10 फीट लम्बा 6 फीट चौड़ा और 3 फीट ऊँचा रखा जाता है। ईंटों को जोड़कर टांका बनाया जाता है। ईंटों को जोड़ते समय ध्यान रखे कि तीसरे, छठे और नवें रद्दे में मधुमक्खी के छत्ते के समान 6-7 छेद छोड़ दे। जिससे टांके के अंदर रखे पदार्थ को बाह्य वायु मिलती रहें। इसी प्रकार 3 या 4 फीट की ऊंचाई तक ईंटो को जोड़कर एक आयताकार गड्ढा तैयार करले।इस प्रकार के टांके से एक वर्ष में तीन बार कम्पोस्ट खाद तैयार किया जा सकता है।

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नाड़ेप खाद बनाने की विधि


किसान भाईयो नाडेप टांका तैयार होने के बाद टांके को भरने के लिए जो आवश्यक सामग्री चाहिए उसकी जानकारी इस प्रकार है।
1-  खेतों पर उपलब्ध कचरा, जैव अवशेष ( मात्रा = 1500 से 1700 किलोग्राम)
2-  गोबर ( मात्रा =350से 400 किलोग्राम )
3-  मिट्टी ( भुर-भुरी, छनी हुई ) मात्रा = 8 से 10 बाल्टी
4-  पानी (आवश्यकता आनुसार  400 से 500 लीटर )
यदि जैव अवशेष हरा और गीला है तब पानी की आवश्यकता कम होती है।

टांका भराई

●  सर्वप्रथम ईंटो से तैयार टांके की दीवार के अंदर वाले हिस्से पर गोबर के घोल का अच्छी तरह से छिड़काव करें।
●  खेतो से प्राप्त जैव अवशेष, कचरा आदि को 3-4 इंच के छोटे टुकड़ों में काट लें तथा इसकी 5 से 6 इंच की मोटी परत टांके की तली में बिछाले।
●  अब इस कचरे के ऊपर 4से 5 किलो गोबर 100 से 125 लीटर पानी में डाल कर इसका घोल तैयार करले।गोबर के इस घोल का कचरे की परत पर अच्छी तरह से छिड़काव करे।
●  अब टांके मे तीसरी परत के रूप मे 50-60 किलोग्राम साफ छनी हुई मिट्टी टांके मे फैलाकर डाले तथा थोड़ा गोबर का घोल छिड़क दें ताकि मिट्टी हवा से उड़े नही।
इस तरह परत बनाने के क्रम को तबतक दोहराते रहे  जब तक टांका ऊपर तक भर न जाये। अंत मे सबसे उपरी परत को झोपड़ीनुमा आकार में बनाकर गोबर से लीपकर टांके को छोड़ दें।

कुछ ध्यान देने योग्य बाते

• किसान भाई ध्यान रखे कि इस पर दरार न पड़ने दें दरार पड़ने पर इसे बार बार गोबर से लीपते रहें।
• 5 से 6 दिन बाद जाली के छेदों में से देखें, गरमी का अहसास होगा।
• 15 से 20 दिन में टांके की सामग्री सिकुड़कर टांके के 8-9 इंच अंदर धंस जाएगी।
• 10 - 15 दिनों बाद जाली के छेदों से हाथ डालकर ये देखते रहें कि जैविक सामग्री मे पर्याप्त नमी है। अगर नमी पर्याप्त नही है तो जरूरत के अनुसार इन्हीं छेदों के द्वरा टांके मे पानी छींटते रहें।
• 75 से 90 दिन बाद जब हमारी यह जैविक खाद लगभग पक गई हो और तापमान सामान्य हो जाये उस समय टांके में किसी औजार की सहायता से जगह जगह 15-20 छेद करें।
• अब एक-एक किलो राइजोबियम जीवाणु, एजेटोबेक्टर जीवाणु और पी.एस.बी. एक-एक बाल्टी पानी में अलग-अलग घोल कर अलग-अलग छेदों से टांके मे डालें। और छेदों को फिर से बंद कर दें। उचित यह होगा कि जिस फसल में उत्पादित खाद का उपयोग किया जाना है उसी फसल से संबंधित राइजोबियम कल्चर का उपयोग करें। खाद की गुणवत्ता भी सुधरेगी और नत्रजन, स्फुर व पोटाश की मात्रा भी बढ़ेगी। इसके साथ ही अधिक संख्या में जीवाणु भी होंगे।
•  110-120 दिन बाद नाडेप विधि से आप की खाद पूरी तरह तैयार हो जाएगी। इसके बाद इस तैयार जैविक खाद को टांके से बाहर निकाल ले।
• खाद के ढेर को किसी छायादार स्थान पर रखकर सूखे पत्तों या टांट के खाली बोरे से ढक कर इस पर पानी का हल्का छिड़काव करें।
• ऊपरी परत का अधपका 10-15 प्रतिशत कचरा अलग कर उसे नया टांका भरते समय दोबारा प्रयोग करे।
• एक टांके से लगभग 3 टन से लेकर 3.5 टन तक अच्छी क्वालिटी की जैविक खाद प्राप्त होती हैं। जो एक हैक्टेयर क्षेत्र के लिये काफी है।

भू-नाडेप अथवा कच्चे नाडेप


किसान भाईयो नाडेप विधि से जैविक खाद बनाने के लिए भू-नाडेप अथवा कच्चा नाडेप सबसे सरल और बिना खर्च जैविक खाद बनाने का तरीका है। इस भू-नाडेप मे परम्परागत तरीके के विपरीत बिना गड्डा खोदे ही जमीन पर एक निश्चित आकार (12 फीट×5 फीट अथवा 10 फीट×6 फीट ) के अनुसार आयताकार बेड बनाया जाता है। इस प्रकार के आयताकार बेड का पक्के नाडेप की विधि के ही अनुसार टांका भरा जाता है।
इस विधि मे गोबर तथा कचरे का लगभग 5 से 6 फीट ऊंचाई तक एक आयताकार ढेर बनाया जाता है। इस आयताकार व व्यवस्थित ढेर को चारों ओर से गीली मिट्टी का लेप लगाकर बंदकर देते है। मिट्टी का लेप लगाने के दूसरे अथवा तीसरे दिन जब गीली मिट्टी सुख कर कुछ कड़ी हो जाये तब किसी गोलाकार या  आयताकार टीन अथवा प्लास्टिक के डिब्बे से ढ़ेर की लम्बाई व चौड़ाई में 9-9 के अंतर पर 7-8 गहरे छिद्र बना दिए जाते है। इन छिद्रों के माध्यम से हवा का आवागमन होता है। और आवश्यकता पड़ने पर टांके मे पानी भी डाला जा सकता है। ताकि इन जैविक पदार्थो में पर्याप्त नमी बनी रहें और विघटन क्रिया अच्छी तरह से हो सके।
इस प्रकार से बने कच्चे नाडेप मे 3 से 4 माह के भीतर जैविक पदार्थ अच्छी तरह से पक जाता है। जिससे अच्छी तरह पकी हुई भुरभुरी, भूरे रंग की दुर्गन्ध रहित उत्तम गुणवत्ता की जैविक खाद तैयार हो जाती है।

टटिया नाडेप


टटिया नाडेप टांका


किसान भाईयो टटिया नाडेप भी भू-नाडेप अथवा कच्चे नाडेप की तरह ही होते हैं। लेकिन टटिया नाडेप मे आयताकार व व्यवस्थित गोबर और कचरे के ढ़ेर को चारों ओर से गीली मिट्टी का लेप नही लगते है। और ना ही ईंटो की दीवार बनाते है बल्कि इस की जगह बांस तथा बेशरम की लकड़ी आदि का प्रयोग करते है। इन बांस तथा बेशर्म से टटिया बनाकर ढेर को चारों ओर से बंद कर दिया जाता है। इसमें हवा का आवागमन स्वाभाविक रूप से हल्के छेद होने के कारण अपने आप ही होता रहता है।

नाडेप विधि से बने कम्पोस्ट खाद की गुणवत्ता सुधारने हेतु कुछ अतिरिक्त उपाय


किसान भाई कुछ अतिरिक्त कार्य करके नाडेप विधि से बनी कम्पोस्ट खाद की गुणवत्ता में और अधिक सुधार कर सकते है। जिससे ये खाद किसानों के लिए अधिक लाभकारी रहेगा।

• खेतो से प्राप्त जैव अवशेषों मे सूखा अवशेष 60 प्रतिशत तथा हरा अवशेषों का 40 प्रतिशत भाग प्रयोग मे ले ।ताकि कार्बन एवं नत्रजन का अनुपात सहीं रहे । जैव अवशेषों के इस अनुपात मे प्रयोग करने से स्फुर की कमी वाली मिट्टी मे भी सुधार आजाता है ।
• फसलो को दीमक के प्रकोप से बचने के लिए नीम की पत्तीयों का प्रयोग टांका भरते समय ही परत बनाने में करे। इस प्रकार बनी कम्पोस्ट खाद प्राकृतिक कीटनाशक का भी काम करेगी।
• जैव अवशेष के रूप मे गोमूत्र से भीगा हुआ पुआल,घास-फूस अथवा अन्य खरपतवार का प्रयोग करने से भी जैविक खाद की गुणवत्ता बढ़ जाती है ।
• नाडेप टांक भरते समय गोबर घोल के स्थान पर गोबर गैस की स्लरी घोल को प्रयोग करने से कम्पोस्ट खाद कम समय में तैयार हो जाती है ।
• इसके अलावा खाद के तैयार होने के अंतिम चरण में पोले बांस या पाइप के माध्यम से स्फुर घोलक जीवाणु इजोस्पाइरिलम एजोटोबेक्टर माइकोराहिजा ट्राइकोडर्मा आदि लाभदायी सूक्ष्म जीव के घोल को मिलाने से भी उच्च गुणवत्ता वाली कम्पोस्ट खाद प्राप्त की जा सकती है।

प्रयोग विधि

नाडेप विधि से तैयार की गई कम्पोस्ट खाद की लगभग 3 से 4 टन मात्रा एक हेक्टेयर भूमि के लिए काफी होती है।इस कम्पोस्ट खाद को उपयोग मे लेने हेतु किसान भाई अपने खेतों मे फसल रोपण से 15 दिन पहले ही इस कम्पोस्ट खाद को  खेत मे अच्छी तरह से फैलाकर 2 या 3 बार जुताई करे।ताकि कम्पोस्ट खाद अच्छी तरह से खेत की मिट्टी मे मिल जाये।

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Thursday, December 21, 2017

सफेद मूसली की खेती ने किसान को किया मालामाल



प्रिय पाठकों जैसा कि हम सब जानते है कि फसलो की कम पैदावार और उस पर खर्च अधिक होने से हमारे किसान भाई कर्ज में डूबे हुए है। जिस कारण किसानों की आत्महत्त्या करने की दर में भी लगातार व्रद्धि हो रही है। ऐसी भयावह स्तिथि मे प्रगतिशील किसान उम्मीद की एक किरण बनकर हताश लोगो मे नई जान डाल रहे है। ऐसे ही प्रगतिशील किसानो मे से एक हे जयपुर के कोल्यारी तहसील झाड़ोल के निवासी नानालाल शर्मा जी।



नानालाल शर्मा भी पहले एक सामान्य किसान की तरह गेहूं, मक्का, उड़द और सरसों आदि की खेती किया करते थे।लेकिन इस पारम्परिक खेती मे अधिक खर्च और कड़ी मेहनत के बाद भी उन्हें ज्यादा लाभ नहीं मिलपाता था। वे भी अपनी फसल के अच्छे दाम न मिलने से निराश ही होते थे। फिर एक बार उन्होंने कथौड़ी समाज के कुछ लोगों को जंगलो से सफेद मूसली लाकर बाजार मे बेचते हुए देखा तो उन्हें बहुत आश्चर्य हुआ जब उन्होंने इस सफेद मूसली का भाव पता किया। तभी उनके मन में भी सफेद मूसली की खेती करने की बात आई।
नानालाल शर्मा ने जुलाई 2001 में धरावण के जंगल से सफेद मूसली के करीब 5000 पौधे लाकर अपने खेत में लगाए। जब ये पौधे बड़े हुए तो उन्हीं पौधों से तैयार जड़ों को उन्होंने दोबारा 2002 में अपने खेत में लगादी। इन जड़ो की बुआई के चौथे दिन ही इनमे अंकुरण शुरू हो गया। इन पौधों पर एक माह के बाद सफेद फूल आगये। फिर सितम्बर 2002 में नानालाल शर्मा की मेहनत रंग लाई और उन्हें उनके खेत से सफेद मूसली की बम्पर फसल प्राप्त हुई। इस प्रक्रिया में कृषि विभाग पूर्ण रूप से मार्गदर्शक के रूप में उनके साथ रहा। कथौड़ियों से जानकारी लेकर सफेद मूसली को सुखा लिया।इसके बाद वे इसे बेचने लगे। इस वर्ष उन्हें आधे बीघा भूमि में करीब 80,000 रुपए का लाभ हुआ। इसे देखकर अन्य किसान भी सफेद मूसली का बीज ले जाकर खेती करने लग गए। सफेद मूसली का उत्पादन बोए गए बीज की मात्रा का पंद्रह गुणा तक प्राप्त होता है।

सफेद मूसली का छिलका उतारते हुए नानालाल शर्मा के मन में आया कि सूखी मूसली बेचने के बजाय अगर पाउडर बनाकर बेचा जाए तो और भी अधिक लाभ होगा। शर्मा ने इसका पाउडर बनाकर बेचा। लोगों ने इस पाउडर को भी खरीदा, लेकिन उन्हें इसके उपयोग में ज्यादा मेहनत करनी पड़ती थी।

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इसमे चिकनाहट होने के कारण इसे खाने या दूध के साथ लेने में थोड़ी दिक्कत होती थी। एक उपयोगकर्ता ने जब इसकी शिकायत शर्मा से की तो शर्मा ने दूसरा तरीका अपनाया और सफेद मूसली पाउडर के केप्सूल बनाने का कार्य शुरू किया। वर्तमान में शर्मा सफेद मूसली के 1.50 से 2 लाख केप्सूल बनाकर 2 प्रति केप्सूल की दर से प्रति वर्ष बेच रहे हैं। साथ ही बीज भी बेच रहे हैं, इससे उन्हें 4 लाख से अधिक की आय हो रही है। शर्मा का मानना है कि झाड़ोल फलासिया में सफेद मूसली की खेती प्रति वर्ष 100 करोड़ से पार जा सकती है।
शर्मा को उम्मीद है कि वर्तमान में झाड़ोल तहसील जिला-उदयपुर के कोल्यारी, धरावण, जेतावाड़ा, सीगरी, मैसांणा, ओड़ा, धोबावाड़ा, तलाई आदि गांवों में 3500 किसानों से बढ़ाकर 15000 से अधिक किसान इसकी खेती प्रारम्भ करें। सफेद मूसली की खेती को कोटड़ा तक फैलाना, क्षेत्रफल बढ़ाना, साथ ही एक प्रसंस्करण यूनिट स्थापित करवाना भी उनका सपना है।

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इस प्रसंस्करण यूनिट के माध्यम से सफेद मूसली केप्सूल और इसके पाउडर की अच्छी तरह पैकिंग कर बाजार में बेच जा सकेगा तथा किसानों की उत्पादन व मार्केटिंग कम्पनी बनाकर इसके निर्यात का रास्ता तैयार हो सकेगा। उदयपुर में आयोजित होने वाले ग्लोबल राजस्थान एग्रीटेक मीट (ग्राम उदयपुर) के दौरान मूसली के मूल्यवर्धित उत्पादों का भी प्रदर्शन किया जाएगा।

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Wednesday, December 20, 2017

पालक की खेती करके किसान लाखो में कमाई कर सकते है। कैसे करे खेती



किसान भाइयों के सच्चा साथी किसान हेल्प रूम इस बार अपने किसान भाइयों के लिए एक ऐसी खेती की जानकारी लेकर आया है। जिसे अपना कर वे किसान भाई अपनी आय को बढ़ा सकते है जो शहरों के आस-पास खेती करते है।
किसान भाइयों जैसा कि आप सब जानते ही हो कि भारतीय व्यंजनों में हरी सब्जिया अपना एक अलग ही महत्व हैं। और इन हरी सब्जियों में भी पालक अपना एक अलग ही स्थान रखता है। ठंड के दिनों में जहां मक्की की रोटी और सरसों, पालक का साग लोगो को ख़ासा पसंद आता है। वही सालभर पालक-पनीर भी लोगो के खाने का स्वाद बढ़ता है। पालक का अपना एक विशेष महत्व है। यह एक ऐसी हरी सब्जी है जो को आयरन, एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर होती है। और साथ ही विटामिन B12, पोटेशियम और फाईबर भी पालक में प्रचुर मात्रा मे पाया जाता है।



किसान भाइयों पालक की खेती एक ऐसी खेती है जो काम लागत के साथ-साथ बहुत ही कम समय मे अच्छा मुनाफा देती है। पालक की 1 बार बुवाई करने के बाद उस की 5-6 बार कटाई की जाती है। एक बार पालक की कटाई होने के बाद लगभग 15 दिनों मे दोबारा कटाई योग्य हो जाता है। पालक की खेती करने वाले किसानों द्वारा इसकी खेती पूरे साल की जाती है। अलग अलग महीनों में इस की बुवाई करनी पड़ती है। इस से किसानों को सालभर नकदी भी प्राप्त होती है।

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कैसे करे पालक की उन्नत खेती?
वैसे तो जो लोग खेती-बाड़ी से जुड़े हुए है खेती करने के बारे में जानते है। लेकिन हम इस लेख में उन्नत तरीके से पालक की खेती करने के बारे में बता रहे है जिसे उपयोग में लाकर किसान भाई अपनी आय मे व्रद्धि कर सकते है।
पालक की खेती करने के लिए सबसे पहले किसान भाई खेत का चुनाव कर ले। इसके लिए हल्की दोमट मिट्टी उत्तम रहती है जिसमे जल निकास की अच्छी व्यवस्था हो और सिंचाई के लिए भी पानी की अच्छी व्यवस्था हो।

खेत की तैयारी = पालक की बुवाई से पहले खेत की अच्छी तरह से 2-3 बार जुताई कर के मिट्टी को भुरभुरी बना लेना चाहिए। इसके लिए हैरो या कल्टीवेटर से 2-3 बार जुताई की जानी चाहिए। जुताई के समय ही खेत से खरपतवार भी निकाल देने चाहिए। अच्छी पैदावार लेने के लिए खेत में पाटा लगाने से पहले 25 से 30 टन/हे. की दर से गोबर की सड़ी खाद व 1 क्विंटल नीम की खली या नीम की पत्तियों से तैयार की गई खाद को खेत में बिखेर देना चाहिए। अब आपका खेत पालक बुवाई के लिए तैयार है।

बुवाई का समय = वैसे तो पालक की खेती किसानों द्वारा पूरे साल की जा सकती है। लेकिन फरवरी से मार्च व नवंबर से दिसंबर के महीनों मे इसकी बुवाई  करना ज्यादा  फायदेमंद रहता है।

बीज की मात्रा व बुवाई = किसान भाईयो पालक की अच्छी पैदावार लेने के लिए पालक की उन्नत प्रजातियों का 25-30 किलोग्राम बीज/हेक्टेयर की दर से बुवाई किया जाता है। अच्छे जमाव के लिए बुवाई से पहले बीजों को 5-6 घंटे तक पानी में भिगो कर रखा जाता है। बुवाई  के समय खेत में नमी का होना जरूरी है। अगर पालक को लाइनों में बोया जा रहा है तो लाइन से लाइन की दूरी 20 सेंटीमीटर व पौधे से पौधे की दूरी भी 20 सेंटीमीटर रखनी चाहिए। यदि आप छिटकवां विधि से बुवाई करते है तो यह ध्यान रखें कि बीज ज्यादा पासपास न गिरने पाएं।

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पालक की उन्नत प्रजातियां =  पालक की उन्नत  प्रजातियों में जोबनेर ग्रीन, हिसार सिलेक्सन 26, पूसा पालक, पूसा हरित, आलग्रीन, पूसा ज्योति, बनर्जी जाइंट, लांग स्टैंडिंग, पूसा भारती, पंत कंपोजिटी 1, पालक नंबर 15-16 प्रमुख प्रजातीय हैं।
इन प्रजातियों के पौधे लंबे होते हैं। इन के पत्ते कोमल,हरे व खाने में स्वादिष्ठ होते हैं।



खरपतवार व कीट नियंत्रण = पालक में वैसे तो कीटो का प्रकोप कम ही होता है। लेकिन गर्मियों मे ली जाने वाली फसल पर पत्ता खाने वाली इल्लियों को प्रकोप देखा जा सकता है। पालक मे खरपतवार होने की संभावना अधिक बनी रहती है। पालक की फसल में किसी भी तरह के रासायनिक कीटनाशकों के इस्तेमाल से किसान भाईयो को बचना चाहिए। अगर फसल में खरपतवार उग आएं तो उन्हें जड़ से उखाड़ देना चाहिए। पालक की  फसल में कैटर पिलर नाम का एक कीट पाया जाता है। ये कीट पहले पत्तियों को खाता है और बाद में तने को भी नष्ट कर देता है। इस कीट से निजात पाने के लिए किसान भाइयों को जैविक कीटनाशकों का ही प्रयोग चाहिए। जैविक कीटनाशक के रूप में किसान नीम की पत्तियों का घोल बना कर 15-20 दिनों के अंतर पर छिड़काव कर सकते हैं। इस के अलावा 20 लीटर गौमूत्र में 3 किलोग्राम नीम की पत्तियां व आधा किलो तंबाकू घोल कर फसल में छिड़काव कर कीट नियंत्रण किया जा सकता है। इसके अलावा WEST D COMPOSSER के घोल के साथ नीम की पत्तियों को मिलाकर भी छिड़काव किया जा सकता है।
खाद व उर्वरक = पालक की खेती के लिए गोबर की सड़ी खाद व वर्मी कंपोस्ट का इस्तेमाल ही सब से सही होता है। इससे मिटटी को सही पोषक तत्व मिलते है और पालक की फसल भी अच्छी होती है।बुवाई के समय 20 किलोग्राम नाइट्रोजन, 50 किलोग्राम फास्फोरस व 60 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में डालने से पैदावार बहुत अच्छी होती है। इस के अलावा पालक की प्रत्येक कटाई के बाद 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से नाइट्रोजन का बुरकाव खेत में करते रहना चाहिए। इससे पालक की बढ़वार में अच्छी वृद्धि होगी।

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पैदावार तथा लाभ = पालक की बुवाई के  25 दिन बाद जब पत्तियों की लंबाई 15-30 सेंटीमीटर के करीब हो जाए तो पहली कटाई कर देनी चाहिए। किसान भाई पहली कटाई करते समय यह ध्यान रखें कि पौधों की जड़ों से 5-6 सेंटीमीटर ऊपर से ही पत्तियों की कटाई करे। इसके बाद प्रत्येक कटाई 15-20 दिनों के अंतर पर करते रहना चाहिए। पालक की कटाई के बाद तुरन्त फसल की सिंचाई  करें इससे फसल मे तेजी से बढ़वार होती है।

पालक के उत्पादन की बात करे तो 1 हेक्टेयर भूमी से 150-250 क्विंटल तक की औसत उपज  हासिल हो जाती है। जिसे अपने नजदीकी बाजार में 15-20 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से आसानी से बेच जा सकता है। इस प्रकार अगर प्रति हेक्टेयर लागत के 25 हजार रुपए निकाल दिए जाएं तो 1500 रुपए प्रति क्विंटल की दर से 200 क्विंटल से 3 महीने में ही 2 लाख, 75 हजार  रुपए की आय हो जाती है।

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जीवामृत



किसान भाइयों आज हमे जीवामृत से खेती करने की बहुत ही आवश्यकता है। क्योंकि हरितक्रांति के बाद से ही भारतीय खेती मे जिस प्रकार रसायनिक उर्वरको का आंख बंद कर के बड़ी भारी मात्रा मे प्रयोग हुआ है उसने हमारी भूमि की संरचना ही बदल कर रखदी है। आज बहुत ही तेजी से खेती योग्य भूमि बंजर भूमि में बदलती जा रही है। और लाखों करोड़ रुपया किसानों का रासायनिक उर्वरकों पर खर्च हो रहा है। खेतो मे लगातार रासायनिक उर्वको के प्रयोग से फसल की पैदावार पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।



अधिक खर्च और कम उत्पादन के कारण ही किसान भाई कर्ज से दबे हुए है। साथ ही हमारे खाने से होकर ये जहर हमारे स्वास्थ्य को भी खराब कर रहा है।

इन सभी समस्याओं के समाधान के लिए जैविक खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है। जैविक खेती के अंतर्गत किसानों के पास उपलब्ध संसाधनों से ही कहती करके अधिक पैदावार लेना है। जैसे रासायनिक उर्वरकों की जगह अधिक से अधिक जैविक खादों का प्रयोग करना। जिनमे कम्पोस्ट खाद, वर्मीकम्पोस्ट, जीवामृत,गोमूत्र आदि का प्रयोग करना है।
इस लेख में हम जीवामृत के बारे में जानकारी दे रहे है। जिसे किसान भाई कम लागत मे अपने ही घर पर बनाकर खेतो मे प्रयोग करके अधिक लाभ ले सकते है।
जीवामृत क्या है?
किसान भाईयो जीवामृत एक अत्यधिक प्रभावशाली जैविक खाद है। जिसे गोबर के साथ पानी मे कई और पदार्थ मिलाकर तैयार किया जाता है। जो पौधों की वृद्धि और विकास में सहायक है। यह पौधों की विभिन्न रोगाणुओं से सुरक्षा करता है तथा पौधों की प्रतिरक्षा क्षमता को बढ़ाता है जिससे पौधे स्वस्थ बने रहते हैं तथा फसल से बहुत ही अच्छी पैदावार मिलती है। जीवामृत को किसान भाई दो रूपों में बना सकते है।
1  तरल जीवामृत 
2  घन जीवामृत
तरल जीवामृत बनाने की विधि
किसान भाईयो तरल जीवामृत बनाने के लिए हमे निम्नलिखित सामग्रियों की आवश्यकता होती है।

1- देशी गाय का 10 किलो गोबर (देशी बैल या भैंस का भी ले सकते हैं)
2- 10 लीटर गौमूत्र (देशी बैल या भैंस का भी ले सकते हैं)
3- पुराना सड़ा हुआ गुड़ 1 किलो (नया गुड़ भी ले सकते है) अगर गुड़ न मिले तो 4 लीटर गन्ने का रस भी प्रयोग कर सकते है।
4- किसी भी प्रकार की दाल का 1 किलो आटा (मूंग, उर्द, अरहर, चना आदि का आटा)
5- बरगद या पीपल के पेड़ के नीचे की मिट्टी 1 किलो इसे सजीव मिट्टी भी कहते है।अगर पीपल या बरगद के पेड़ के नीचे की मिट्टी न मिले तो ऐसे खेत की मिट्टी प्रयोग की जा सकती है जिसमें कीटनाशक न डाले गए हों।
6- 200 लीटर पानी
7- एक बड़ा पात्र (ड्रम आदि)
नोट:
बरगद या पीपल के पेड़ के नीचे की मिट्टी सबसे अच्छी होती है क्योंकि बरगद और पीपल के पेड़ हर समय ऑक्सीजन देने वाले पेड़ हैं और ज्यादा ऑक्सीजन देने वाले पेड़  के नीचे जीवाणुओं की संख्या अधिक पाई जाती है। ये जीवाणु खेत के लिए बहुत ही आवश्यक एवं लाभदायक हैं।
ये सब सामग्री इकट्ठा करके सबसे पहले 10 किलोग्राम देशी गाय का गोबर, 10 लीटर देशी गौमूत्र, 1 किलोग्राम पुराना सड़ा हुआ गुड़ या 4 लीटर गन्ने का रस, 1 किलोग्राम किसी भी दाल का आटा, 1 किलोग्राम सजीव मिट्टी एवं 200 लीटर पानी को एक मिट्टी के मटके या प्लास्टिक के ड्रम में डालकर किसी डंडे की सहायता से इस मिश्रण को अच्छी तरह हिलाये जिससे ये पूरी तरह से मिक्स हो जाये। अब इस मटके या ड्रम को ढक कर छांव मे रखदे। इस मिश्रण पर सीधी धूप नही पड़नी चाहिए।
अगले दिन इस मिश्रण को फिर से किसी लकड़ी की सहायता से हिलाए, 6 से 7 दिनों तक इसी कार्य को करते रहे। लगभग 7 दिन के बाद जीवामृत उपयोग के लिए बनकर तैयार हो जायेगा। यह 200 लीटर जीवामृत एक एकड़ भूमि के लिये पर्याप्त है।
किसान भाईयो विशेषज्ञ बताते है कि देशी गाय के 1 ग्राम गोबर में लगभग 500 करोड़ जीवाणु होते हैं। जब हम जीवामृत बनाने के लिए 200 लीटर पानी में 10 किलो गोबर डालते हैं तो लगभग 50 लाख करोड़ जीवाणु इस पानी मे डालते हैं  जीवामृत बनते समय हर 20 मिनट में उनकी संख्या दोगुनी हो जाती है। जीवामृत जब हम 7 दिन तक किण्वन के लिए रखते हैं तो उनकी संख्या अरबों-खरबों हो जाती है। जब हम जीवामृत भूमि में पानी के साथ डालते हैं, तब भूमि में ये सूक्ष्म जीव अपने कार्य में लग जाते हैं तथा पौधों को आवश्यक पोषक तत्व उपलब्ध कराते हैं।

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तरल जीवामृत को कैसे प्रयोग करे?
किसान भाई इस तरल जीवामृत को कई प्रकार से अपने खेतों मे प्रयोग कर सकते है। इसके लिए सबसे अच्छा तरीका है फसल में पानी के साथ जीवामृत देना जिस खेत में आप सिंचाई कर रहे हैं उस खेत के लिए पानी ले जाने वाली नाली के ऊपर ड्रम को रखकर वाल्व की सहायता से जीवामृत पानी मे डाले धार इतनी रखें कि खेत में पानी लगने के साथ ही ड्रम खाली हो जाए। जीवामृत पानी में मिलकर अपने आप फसलों की जड़ों तक पहुँचेगा। इस प्रकार जीवामृत 21 दिनों के अंतराल पर आप फसलो को दे सकते है। इसके अलावा खेत की जुताई के समय भी जीवामृत को मिट्टी पर भी छिड़का जा सकता है। किसान भाई इस तरल जीवामृत का फसलो पर छिड़काव भी कर सकते है। फलदार पेड़ो के लिए पेड़ों दोपहर 12 बजे के समय पेड़ो की जो छाया पड़ती है उस छाया के बाहर की कक्षा के पास 1.0-1.5 फुट पर चारों तरफ से नाली बनाकर प्रति पेड़ 2 से 5 लीटर जीवामृत महीने में दो बार पानी के साथ दीजिए। जीवामृत छिडकते समय भूमि में नमी होनी चाहिए।
जीवामृत का प्रयोग किसान भाई गेहूँ, मक्का, बाजरा, धान, मूंग, उर्द, कपास, सरसों,मिर्च, टमाटर, बैंगन, प्याज, मूली, गाजर आदि फसलो के साथ ही अन्य सभी प्रकार के फलदार पेड़ों में कर सकते हैं। इसका कोई नुकसान नही है।
घन जीवामृत बनाने की विधि
किसान भाईयो घन जीवामृत बनाने के लिए निम्नलिखित सामग्री की आवश्यकता होती है।
1-  100 किलोग्राम देशी गाय का गोबर
2-  5 लीटर देशी गौमूत्र
3-  2 किलोग्राम गुड़
4-  2 किलोग्राम दाल का आटा
5-  1 किलोग्राम सजीव मिट्टी
ये सब सामग्री एकत्रित करके सबसे पहले 100 किलोग्राम देशी गाय का गोबर लें और उसमें 2 किलोग्राम गुड़ तथा 2 किलोग्राम दाल का आटा और 1 किलोग्राम सजीव मिट्टी डालकर अच्छी तरह मिश्रण तैयार कर लें। इस मिश्रण में थोड़ा-थोड़ा गौमूत्र डालकर उसे अच्छी तरह मिलाकर गूंथ लें ताकि उसका घन जीवामृत बन जाये। अब इस गीले घन जीवामृत को छाँव में अच्छी तरह फैलाकर सुखा लें। सूखने के बाद इसको लकड़ी से ठोक कर बारीक़ कर लें तथा इसे बोरों में भरकर छाँव में रख दें। इस प्रकार बने घन जीवामृत को आप 6 महीने तक भंडारण करके रख सकते हैं।

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घन जीवामृत को कैसे प्रयोग करे?
किसान भाईयो घन जीवामृत को हम किसी भी समय भूमि में दाल सकते है। खेत की जुताई के बाद इसका प्रयोग सबसे अच्छा होता है। जब हम भूमि में इसे डालते हैं तो नमी मिलते ही घन जीवामृत में मौजूद सूक्ष्म जीवाणु कोष तोड़कर समाधि भंग करके पुन: अपने कार्य में लग जाते हैं। किसी भी फसल की बुवाई के समय प्रति एकड़ १०० किलोग्राम जैविक खाद और २० किलोग्राम घन जीवामृत को बीज के साथ बोइये। इससे बहुत ही अच्छे परिणाम देखने को मिलते हैं। इस के प्रयोग से आप रासायनिक खादों से ज्यादा उपज ले सकते हैं। बीज बोते समय बोने का जो औजार है उसमे दो नलियों का बाउल लगाएं, एक बाउल से बीज बोयें और दूसरे बाउल से यह जैविक खाद और घन जीवामृत का मिश्रण डाले या आपके इलाके में बीज बोने की जो भी विधि हो, उससे ही इन दोनों की बुवाई करे।

जीवामृत के प्रयोग से होने वालेे लाभ
1-  जीवामृत पौधे को अधिक ठंड और अधिक गर्मी से लड़ने की शक्ति प्रदान करता है।
2-  फसलो पर इसके प्रयोग से फूलों और फलों में वृद्धि होती है।
3-  जीवामृत सभी प्रकार की फसलों के लिए लाभकरी है।
4-  इसमें कोई भी नुकसान देने वाला तत्व या जीवाणु नही है।
5-  जीवामृत के प्रयोग से उगे फल,सब्जी, अनाज देखने में सुंदर और खाने में अधिक स्वादिष्ट होते है।
6-  पौधों में बिमारियों के प्रति लड़ने की शक्ति बढ़ाता है।
7-  मिट्टी में से तत्वों को लेने और उपयोग करने की क्षमता बढ़ती है।
8-  बीज की अंकुरन क्षमता में वृद्धि होती है |
9-  इससे फसलों और फलों में एकसारता आती है तथा पैदावार में भी वृद्धि होती है।
जीवामृत का लगातार उपयोग भूमि पर क्या असर डालता है?
1-  किसान भाईयो जीवामृत के लगातार प्रयोग करने से भूमि में केचुआ और अन्य लाभदायक सूक्ष्म जीव जैसे- शैवाल, कवक, प्रोटोजोआ व  बैक्टीरिया इत्यादि में वृद्धि होती है जो पौधों को आवश्यक पोषक तत्व प्रदान करते हैं।
2-  भूमि की उर्वरा शक्ति मे वृद्धि होती है।
3-  भूमि के भौतिक, रासायनिक और जैविक गुणों में भी इसके प्रयोग से सुधार होता है जिससे भूमि की उपजाऊ शक्ति बनी रहती है।
किसान भाईयो हमे अपने खेतों मे रासायनिक खादों को कम करके जैविक खादों को बढ़ावा देना चाहिए। जीवामृत तो खेती के लिए वरदान है। क्यू कि जब हम भूमि में जीवामृत डालते हैं, तब 1 ग्राम जीवामृत में लगभग 500 करोड़ जीवाणु डालते हैं। वे सब पकाने वाले जीवाणु होते हैं। भूमि तो अन्नपूर्णा है लेकिन जो है, वह पका हुआ नहीं है। पकाने का काम ये जीवाणु करते हैं। जीवामृत उपयोग में लाते ही इसके जीवाणु हर प्रकार के  अन्नद्रव्य (नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश, लोहा, गंधक, जिंक आदि) को पकाकर पौधों की जड़ों को उपलब्ध करा देते हैं। भूमि पर जीवामृत डालते ही एक और चमत्कार होता है, भूमि में करोड़ों केंचुए अपने आप काम में लग जाते हैं, उन्हें बुलाना नहीं पड़ता। ये केंचुए भूमि के अन्दर लगभग 15 फुट से खाद पोषक तत्वों से समृद्ध मिट्टी मल के माध्यम से भूमि की सतह के ऊपर डालते हैं, जिसमें से पौधे अपने लिए आवश्यक सभी खाद पोषक तत्व बड़ी ही सुलभता से चाहे जितनी मात्रा में ले लेते हैं। घने जंगलों में अनगिनत फल देने वाले पेड़ पौधे कैसे जीते हैं ? वे अन्नद्रव्य कहाँ से लेते हैं ? उन्हें केंचुए और सूक्ष्म जीव-जन्तु ही खिलाते और पिलाते हैं। इन केंचुओं के मल में मिट्टी से सात गुना ज्यादा नाइट्रोजन, नौ गुना ज्यादा फास्फोरस, ग्यारह गुना ज्यादा पोटाश, छह गुना ज्यादा कैल्शियम, आठ गुना ज्यादा मैग्नीशियम, व दस गुना ज्यादा गंधक होता है। यानि फसलों और फल पेड़-पौधों को जो जो चाहिए वह प्रचुर मात्रा में होता है। केंचुओं की विष्टा खाद तत्वों का महासागर है। जीवामृत डालने से केंचुए यह महासागर पेड़-पौधों की जड़ों को उपलब्ध कराते हैं। ये अनगिनत सूक्ष्म जीव-जन्तु और केंचुए तभी अच्छा काम करते हैं जब उन्हें भूमि के ऊपर 25 से 30 सेंटीग्रेड तापमान 65 से 70 प्रतिशत नमी और भूमि के अँधेरा और बायोमास मिलती है। इसे सूक्ष्म पर्यावरण या विशिष्ट पारिस्थतिकी भी कहा जाता हैं। जब हम भूमि पर आच्छादन डालकर भूमि को ढक देते हैं तब यह विशेष पर्यावरण अपने आप तैयार हो जाता है। हमें कुछ विशेष नहीं करना पड़ता।

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Sunday, December 10, 2017

मात्र 20 रु. के वेस्ट डी कम्पोजर से फसल की पैदावार बढ़ाए किसान



किसान भाईयो इस लेख में एक ऐसे प्रोडक्ट की जानकारी दी जा रही है जो बहुत है सस्ता है और खेती के लिए बहुत ही लाभदायक भी। ये सब जानते है कि हमारे देश मे हरित क्रांति आने के बाद खेती करने वाले किसान भाइयों का सबसे ज्यादा पैसा उर्वरक पर खर्च होता है। डीएपी यूरिया और दूसरे कई प्रकार के फर्टीलाइजर अधिक महंगे होने के कारण जहाँ किसानों की आय लगभग खत्म हो चुकी हैं वहीं इन रासायनिक उर्वरकों केे लगातार प्रयोग से हमारी भूमि की उर्वरा शक्ति भी घटती जारही है। भूमि की उर्वरा शक्ति घटने के और भी कुछ प्रमुख कारण है जैसे किसान भाइयो द्वारा खेतो में कम्पोस्ट खाद का कम प्रयोग करना और फसलों के बचे अवशेष को खेत में नहीं छोड़ना भी शामिल है जिसके चलते भूमि में कार्बन तत्व लगातार घट रहे हैं।
रासायनिक उर्वरकों से हो रही इस बड़ी हानि को रोकने के लिए अब सरकार जैविक खेती को बढ़ावा दे रही है जिससे कृषि लागत को कम करके किसानों की आय में व्रद्धि की जा सके।



जैविक खेती को लाभकारी बनाने के लिए भारत सरकार के ही कृषि विभाग के जैविक कृषि केंद्र ने एक प्रोडक्ट तैयार किया है जिसे वेस्ट डीकंपोजर नाम दिया गया है। राष्टीय जैविक कृषि केंद्र ने इस वेस्ट डीकंपोजर के 40 मिलीलीटर शीशी की कीमत मात्र 20 रुपए रखी है। कृषि संस्थान का दावा है इस वेस्टे डिकम्पोजर से तीन से चार दिनों में ही कई सौ लीटर तरल खाद तैयार तैयार हो जाती है। जो जैविक खेती करने वालो के साथ-साथ ही रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग करने वाले किसानो के लिए भी लाभदायक है।

वेस्ट डिकम्पोजर क्या है?

किसान भाईयो राष्टीय जैविक खेती केंद्र द्वारा बनाया गया वेस्ट डिकम्पोजर एक प्रकार का फंगस है जिसे गाय के गोबर से निकाला गया है इसके साथ ही इसमें और भी कई प्रकार के फंगस मिलाए जाते है। जो वेस्ट डिकम्पोजर को और भी अधिक उपयोगी बनाते है।

वेस्ट डिकम्पोजर का प्रयोग कैसे करे?

हमारे किसान भाई इस वेस्ट डिकम्पोजर का प्रयोग अपनी खेती में कई प्रकार से कर सकते है इसके प्रयोग से पहले हमें इसका घोल तैयार करना पड़ता है। घोल तैयार करने के लिए एक पात्र में 200 लीटर पानी लेकर उसमें 2 किलो गुड़ मिलादे इसके बाद 40 मिलीलीटर मात्रा वेस्ट डिकम्पोजर इस पानी मे डालकर किसी डंडे की सहायता से अच्छी तरह हिलाकर इस पात्र को ढक कर छाया में रख दे इस घोल को धूप मे न रखे। तीन से चार दिनों में ये घोल प्रयोग के लिए तैयार हो जाता है। जिसे किसान भाई अपने खेतों मे प्रयोग कर सकते है।

इस घोल का प्रयोग खड़ी फसलों मे सिंचाई करते समय पानी के साथ मिलाकर तथा फसल में छिड़काव के रूप में कर सकते है। इसके अलावा जुताई के समय इस घोल को खेत मे छिड़क कर भी किसान भाई प्रयोग कर सकते है। वेस्ट डिकम्पोजर से बीजों का शोधन करने से बीजो का जमाव अच्छा होता है।
केंद्र सरकार हमारे किसान भाईयो को वेस्ट डिकम्पोजर प्रोडक्‍ट को उपलब्‍ध कराने के साथ ही इसे प्रयोग करने की ट्रेनिंग भी देती है। इसके लि‍ए बाकायदा वीडि‍यो भी बनाए गए हैं जिन्हें आप यूट्यूब पर देख सकते है। खेतीबाड़ी में रासायनों के इस्‍तेमाल को कम करने के मकसद से ही इसका नि‍र्माण कि‍या गया है। जैविक कृषि केंद्र के अनुसार जि‍न किसान भाइयों ने इसका प्रयोग कि‍या है, उनकी न केवल लागत कम हुई है बल्‍कि उन्हें‍ अच्‍छा उत्‍पादन भी हासि‍ल हुआ है।

वीडियो देखें



वेस्ट डिकम्पोजर का प्रयोग किसान भाई उच्च गुणवत्ता वाली कम्पोस्ट खाद बनाने के लिए भी करते है। इसके लिए 1 टन कूड़े-कचरे में 20 लीटर वेस्‍ट डीकंपोजर का तैयार घोल छिड़क दें। इसके ऊपर एक परत बिछा दें और फिर घोल का छिड़काव करें। फि‍र सब ढक कर छोड़ दें। तकरीबन 40 दिन में कम्पोस्ट खाद तैयार हो जाएगी। केंद्र से मि‍ली जानकारी के मुताबि‍क, एक शीशी से 20 किलो बीज का शोधन किया जा सकता है। एक शीशी डिकम्पोस्ट को 30 ग्राम गुड़ में मिला दें। यह मिश्रण 20 किलो बीज के लिए पर्याप्त है। शोधन के आधे घंटे बाद बीज की बुआई कर सकते हैं।

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बहुत से किसान भाई वेस्ट डिकम्पोजर से उठा रहे है लाभ।

राष्टीय जैविक कृषि केंद्र के नि‍देशक डॉक्‍टर कि‍शन चंद्रा ने वेस्ट डिकम्पोजर के संबंध में एक वीडि‍यो यूट्यूब पर अपलोड कि‍या है। इ‍स वीडियो में डॉक्टर साहब इसके फायदों के बारे में बता रहे हैं। चंद्रा जी कहते हैं कि‍ सभी कि‍सान बेधड़क इसका प्रयोग कर सकते हैं। उन्‍होंने बताया कि‍ पहले इस तरह के फॉर्मूले को प्राइवेट कम्पनियो को बेच दि‍या जाता था और वह प्रोडक्‍ट बनाकर बाजार में बेचते थे। लेकिन उसकी क्‍वालि‍टी अच्छी नहीं होती थी इसलि‍ए इस बार सरकार ने यह फैसला लि‍या है कि‍ वेस्‍ट डीकंपोजर को सरकार खुद ही कि‍सानों तक पहुंचाएगी।
कहा से खरीदे वेस्ट डीकम्पोज़र
वेस्‍ट डीकंपोजर राष्‍ट्रीय जैवि‍ खेती केंद्र के सभी रीजनल सेंटर पर उपलब्‍ध है। यह गाजि‍याबाद, बंगलुरु, भुवनेश्‍वर, पंचकूला, इंम्‍फाल, जबलपुर, नागरपुर और पटना के रीजनल सेंटर से प्राप्‍त कि‍या जा सकता है या फिर Hapur Road, Near CBI Academy, Sector 19, Kamla Nehru Nagar, Ghaziabad, Uttar Pradesh 201002, Phone: 0120 276 4906 इस पते पर भी पैसे मनी आर्डर करके किसान भाई इसे घर पर ही मंगा सकते हैं।

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Thursday, June 1, 2017

खीरा खाने के 10 महत्वपूर्ण लाभ (फायदे)



गर्मी के मौसम मे खीरा हमारे लिए किसी वरदान से कम नही है। खीरा एक ऐसा खाद्द पदार्थ है जो लगभग पूरे भारतवर्ष मे प्रचुर मात्रा मेें पाया जाता है। खीरे का लगभग 95% हिस्सा पानी होने के कारण खीरा हमारे शरीर को शीतलता (ठंडक) और ताजगी प्रदान करता है। खीरे को हम कई तरह से प्रयोग कर सकते हैं।जैसे- सलाद, सैंडवीच, या फिर खीरे को छील कर उसपर नमक छिड़क कर भी खा सकते हैं। इस लेख मे हम हमारे स्वास्थ्य और सौंदर्य के लिए अतत्यधिक गुणवान खीरे के कुछ महत्वपूर्ण फायदों के बारे में बता रहे है।



शरीर के अंदर जल की पूर्ति करने में मदद करता है _
खीरे में लगभग 95% जल रहता है। इसलिए खीरा शरीर से विषाक्त और अवांछित पदार्थों को बाहर निकालने में मदद करता है और साथ ही शरीर को स्वस्थ तथा जलमिश्रित रखने मे भीें मदद करता है।
त्वचा को खूबसूरत बनाने में मदद करता है। _  खीरा एक ऐसा फल है जो त्वचा को कई प्रकार की समस्याओं से राहत दिलाने में मदद करता है, उदहारण के लिए- टैनिंग, सनबर्न, रैशेज आदि। प्रतिदिन खीरा खाने से रूखी त्वचा म फिर सेें नमी लौट आती है। इसलिए यह नैचरल मॉश्चराइज़र का काम भी बखूबी करता है। यह त्वचा से तेल के निकलने के प्रक्रिया को कम करके मुँहासों का निकलना काफी कम कर देता है।
खीरा हैंगओवर को कम करने में मदद करता है।_ शराब पीना वेसे तो स्वास्थ्य के लिए बहुत ही हानिकारक है। शराब पीने के हमारे शरीर पर बहुत सारे दुष्परिणाम होते हैं इन्ही में से एक ह शराब पीने केैें अगले दिन का हैंगओवर जो बहुत ही कष्ट देनेवाला होता है। इस हैंगओवर सेे बचने के लिए आप रात को सोने से पहले खीरा खाकर सोयें। खीरे म पाये जाने वालेें विटामिन बी, शुगर और इलेक्ट्रोलाइट शराब से होने वाले इस हैंगओवर को कम करने में बहुत मददगार साबित होता हैं।
कोलेस्ट्रॉल को कम करने में मदद करता है।_  खीरा एक ऐसा फल है जिसमें कोलेस्ट्रोल की मात्रा लगभग नही के बराबरं होती है। इस लिए जिन लोगों को दिल की बीमारी होती है उनके लिए प्रतिदिन खीरे का सेवन बहुत लाभदायक है। एक अध्ययन के अनुसार खीरा में जो स्ट्रेरोल (sterols) नाम का यौगिक पाया जता है वह कोलेस्ट्रोल को कम करने में मदद करता है।
पाचन शक्ति को बढ़ाने में मदद करता है।-   प्रतिदिन खीरा खाने से पेट की कई बीमारियो से काफी हद तक राहत मिल जाती है। जैसे- कब्ज़, बदहजमी, अल्सर आदि। क्योंकि खीरे में जल की मात्रा अधिक होने के कारण यह विषाक्त पदार्थों को शरीर से बाहर निकाल देता ह। इसके साथ ही उच्च फाइबर की मात्रा पेट को साफ करने में मदद करती है। और इसमें जो इरेप्सिन नाम का एन्जाइम होता है वह प्रोटीन को भी सोखने में मदद करता है।
मुंह की बदबू को दूर करता है।_  अक्सर देखा गया है कि कुछ लोगो के मुँह से तीव्र बदबू निकलता है।जिन लोगो के मुंह से बदबू आता है उनसे लोग बात करना पसंद नही करते या मुंह फेर कर बाते करते है। जिससे शर्मिंदगी होती है। ऐसे लोगो को चाहिए कि वह कुछ मिनटों के लिए मुँह में खीरे का टुकड़ा काट कर रख लें क्योंकि यह जीवाणुओं को मारकर धीरे-धीरे बदबू निकलना कम कर देता है। आयुर्वेद में बताया गया है कि पेट में गर्मी होने के कारण मुँह से बदबू निकलती है।और खीरा पेट को शीतलता प्रदान करने में मदद करता है।
वज़न घटाने में मददगार _  खीरा उन लोगो के लिए अतत्यधिक लाभदायक होता है जो अपने बढे हुए वजन से काफी परेशान होते है। ऐसे लोगो को नियमित खीरे का सेवन करना चाहिए। खीरे में कैलोरी की मात्रा काफी कम होती है तथा इसमें फाइबर उच्च मात्रा में पाया जाता है। इसलिए मीड डे में भूख लगने पर खीरा खाने से पेट देर तक भरा हुआ रहता है।
तनाव को कम करने मे मददगार । -   आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में लगभग हर एक मनुष्य तनावग्रस्त है। रोज बढ़ता तनाव जिंदगी का अंग बन गया है जिससे शरीर को बहुत ज्यादा नुकसान पहुँच रहा है। ऐसे में तनाव को कम करने के लिए खीरे का सेवन बहुत ही लाभदायक है। खीरे में जो विटामिन बी होता है वह  अधिवृक्क ग्रंथि (adrenal glands ) को नियंत्रित करके तनाव से होने वाली क्षति को कम करने में बहुत मदद करता है।

कैंसर के खतरे को कम करता है।-  खीरा में जो लिग्नेन (lignans) नाम का फाइटोन्यूट्रीएन्ट होता है जो कैंसर को कम करने में मदद करता है। इसमें जो एन्टीऑक्सिडेंट का गुण होता है वह शरीर के प्रतिरोधी क्षमता (immunity) को उन्नत करने के साथ-साथ ही फ्री रैडिकल्स को नष्ट करने म भीें मदद करता है।
10  आँखों के तनाव को कम करने में मदद करता है।- 
इंटरनेट और कंप्यूटर के इस युग मे ज़्यादातर लोगो का अधिकतर समय कम्प्यूटर और स्मार्टफोन पर ही व्यस्त रहने में गुजर जाताे है। जिसका दुष्परिणाम आँखों को झेलना पड़ता है। इसके दर्द और तनाव को कम करने के लिए आँखों पर खीरे का टुकड़ा कुछ देर के लिए रखकर लेट जायें। इससे धीरे-धीरे आँखों को आराम मिल जाता है। इसके अलावा मानसिक रोग (Alzheimer’s) के खतरे को कम करने म भी खीराें मदद करता है। यह एक ऐसा रोग है जिससे सभी बचना चाहते हैं। इसलिए रोज खीरा खायें और मानसिक रोग के खतरे को कम करें।
खीरे के इतने सारे गुण जानने के बाद में समझता हूं आप लोग ज़रूर खीरे को अपने खाने में किसी न किसी रूप में शामिल ज़रूर करेंगे।

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