प्रिय पाठकों जैसा कि हम सब जानते है कि फसलो की कम पैदावार और उस पर खर्च अधिक होने से हमारे किसान भाई कर्ज में डूबे हुए है। जिस कारण किसानों की आत्महत्त्या करने की दर में भी लगातार व्रद्धि हो रही है। ऐसी भयावह स्तिथि मे प्रगतिशील किसान उम्मीद की एक किरण बनकर हताश लोगो मे नई जान डाल रहे है। ऐसे ही प्रगतिशील किसानो मे से एक हे जयपुर के कोल्यारी तहसील झाड़ोल के निवासी नानालाल शर्मा जी।
नानालाल शर्मा भी पहले एक सामान्य किसान की तरह गेहूं, मक्का, उड़द और सरसों आदि की खेती किया करते थे।लेकिन इस पारम्परिक खेती मे अधिक खर्च और कड़ी मेहनत के बाद भी उन्हें ज्यादा लाभ नहीं मिलपाता था। वे भी अपनी फसल के अच्छे दाम न मिलने से निराश ही होते थे। फिर एक बार उन्होंने कथौड़ी समाज के कुछ लोगों को जंगलो से सफेद मूसली लाकर बाजार मे बेचते हुए देखा तो उन्हें बहुत आश्चर्य हुआ जब उन्होंने इस सफेद मूसली का भाव पता किया। तभी उनके मन में भी सफेद मूसली की खेती करने की बात आई।
नानालाल शर्मा ने जुलाई 2001 में धरावण के जंगल से सफेद मूसली के करीब 5000 पौधे लाकर अपने खेत में लगाए। जब ये पौधे बड़े हुए तो उन्हीं पौधों से तैयार जड़ों को उन्होंने दोबारा 2002 में अपने खेत में लगादी। इन जड़ो की बुआई के चौथे दिन ही इनमे अंकुरण शुरू हो गया। इन पौधों पर एक माह के बाद सफेद फूल आगये। फिर सितम्बर 2002 में नानालाल शर्मा की मेहनत रंग लाई और उन्हें उनके खेत से सफेद मूसली की बम्पर फसल प्राप्त हुई। इस प्रक्रिया में कृषि विभाग पूर्ण रूप से मार्गदर्शक के रूप में उनके साथ रहा। कथौड़ियों से जानकारी लेकर सफेद मूसली को सुखा लिया।इसके बाद वे इसे बेचने लगे। इस वर्ष उन्हें आधे बीघा भूमि में करीब 80,000 रुपए का लाभ हुआ। इसे देखकर अन्य किसान भी सफेद मूसली का बीज ले जाकर खेती करने लग गए। सफेद मूसली का उत्पादन बोए गए बीज की मात्रा का पंद्रह गुणा तक प्राप्त होता है।
सफेद मूसली का छिलका उतारते हुए नानालाल शर्मा के मन में आया कि सूखी मूसली बेचने के बजाय अगर पाउडर बनाकर बेचा जाए तो और भी अधिक लाभ होगा। शर्मा ने इसका पाउडर बनाकर बेचा। लोगों ने इस पाउडर को भी खरीदा, लेकिन उन्हें इसके उपयोग में ज्यादा मेहनत करनी पड़ती थी।
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इसमे चिकनाहट होने के कारण इसे खाने या दूध के साथ लेने में थोड़ी दिक्कत होती थी। एक उपयोगकर्ता ने जब इसकी शिकायत शर्मा से की तो शर्मा ने दूसरा तरीका अपनाया और सफेद मूसली पाउडर के केप्सूल बनाने का कार्य शुरू किया। वर्तमान में शर्मा सफेद मूसली के 1.50 से 2 लाख केप्सूल बनाकर 2 प्रति केप्सूल की दर से प्रति वर्ष बेच रहे हैं। साथ ही बीज भी बेच रहे हैं, इससे उन्हें 4 लाख से अधिक की आय हो रही है। शर्मा का मानना है कि झाड़ोल फलासिया में सफेद मूसली की खेती प्रति वर्ष 100 करोड़ से पार जा सकती है।
शर्मा को उम्मीद है कि वर्तमान में झाड़ोल तहसील जिला-उदयपुर के कोल्यारी, धरावण, जेतावाड़ा, सीगरी, मैसांणा, ओड़ा, धोबावाड़ा, तलाई आदि गांवों में 3500 किसानों से बढ़ाकर 15000 से अधिक किसान इसकी खेती प्रारम्भ करें। सफेद मूसली की खेती को कोटड़ा तक फैलाना, क्षेत्रफल बढ़ाना, साथ ही एक प्रसंस्करण यूनिट स्थापित करवाना भी उनका सपना है।
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इस प्रसंस्करण यूनिट के माध्यम से सफेद मूसली केप्सूल और इसके पाउडर की अच्छी तरह पैकिंग कर बाजार में बेच जा सकेगा तथा किसानों की उत्पादन व मार्केटिंग कम्पनी बनाकर इसके निर्यात का रास्ता तैयार हो सकेगा। उदयपुर में आयोजित होने वाले ग्लोबल राजस्थान एग्रीटेक मीट (ग्राम उदयपुर) के दौरान मूसली के मूल्यवर्धित उत्पादों का भी प्रदर्शन किया जाएगा।
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Nice
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