- नाडेप कम्पोस्ट
किसान भाईयो जैसा कि आप सब जानते ही हो जैविक कम्पोस्ट बनाने की कई विधियां हमारे देश मे प्रचलित है।इन्ही सब विधियों मे से एक प्रमुख विधि है। नाडेप विधि। यह विधि ग्राम पुसर, जिला यवतमाल, महाराष्ट्र के निवासी नारायण देवराव पण्ढ़री पांडे जी ने विकसित की थी। इसलिये इस विधि का नाम नादेप विधि (या अंग्रेजी में नाडेप) रखा गया हैं। नाडेप कम्पोस्ट विधि की विशेषता यह है, कि इस प्रक्रिया में जमीन पर ही टांका बनाया जाता है। नाडेप विधि में कम से कम गोबर का प्रयोग करके अधिक मात्रा में अच्छी किस्म की खाद तैयार की जा सकती है। नाडेप विधि मे टांके को भरने के लिए गोबर (देशी गाय का हो तो ज्यादा अच्छा है), कचरा (बायोमास) और बारीक छनी हुई मिट्टी की आवश्यकता होती है। जीवांश को 90 से 120 दिन पकाने में वायु संचार प्रक्रिया का उपयोग किया जाता है। इस विधि द्वरा तैयार की गई जैविक खाद में प्रमुख रूप से 0.1 से 1.5 नत्रजन, 0.5 से 0.9 स्फुर (फास्फोरस) तथा 1.2 से 1.4 प्रतिशत पोटाश के अलावा अन्य सूक्ष्म पोषक तत्व भी पाये जाते है। जो हमारी भूमि को उपजाऊ बनाने के साथ-साथ अच्छी फसल पैदावार के लिए भी आवश्यक है।
नाडेप तीन प्रकार के बनाये जाते हैं।
पक्का नाडेप
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कम्पोस्ट बनाने के लिए नाडेप टांका |
किसान भाइयों नाडेप विधि से जैविक खाद बनाने के लिए पक्का नाडेप सब से अच्छा तरीका है। पक्के नाडेप ईंटों से बनाये जाते हैं। इस प्रकार के नाडेप टांके का आकार 12 फीट लम्बा 5 फीट चौड़ा और 3 फीट ऊँचा अथवा 10 फीट लम्बा 6 फीट चौड़ा और 3 फीट ऊँचा रखा जाता है। ईंटों को जोड़कर टांका बनाया जाता है। ईंटों को जोड़ते समय ध्यान रखे कि तीसरे, छठे और नवें रद्दे में मधुमक्खी के छत्ते के समान 6-7 छेद छोड़ दे। जिससे टांके के अंदर रखे पदार्थ को बाह्य वायु मिलती रहें। इसी प्रकार 3 या 4 फीट की ऊंचाई तक ईंटो को जोड़कर एक आयताकार गड्ढा तैयार करले।इस प्रकार के टांके से एक वर्ष में तीन बार कम्पोस्ट खाद तैयार किया जा सकता है।
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नाड़ेप खाद बनाने की विधि
किसान भाईयो नाडेप टांका तैयार होने के बाद टांके को भरने के लिए जो आवश्यक सामग्री चाहिए उसकी जानकारी इस प्रकार है।
1- खेतों पर उपलब्ध कचरा, जैव अवशेष ( मात्रा = 1500 से 1700 किलोग्राम)
2- गोबर ( मात्रा =350से 400 किलोग्राम )
3- मिट्टी ( भुर-भुरी, छनी हुई ) मात्रा = 8 से 10 बाल्टी
4- पानी (आवश्यकता आनुसार 400 से 500 लीटर )
यदि जैव अवशेष हरा और गीला है तब पानी की आवश्यकता कम होती है।
यदि जैव अवशेष हरा और गीला है तब पानी की आवश्यकता कम होती है।
टांका भराई
● सर्वप्रथम ईंटो से तैयार टांके की दीवार के अंदर वाले हिस्से पर गोबर के घोल का अच्छी तरह से छिड़काव करें।
● खेतो से प्राप्त जैव अवशेष, कचरा आदि को 3-4 इंच के छोटे टुकड़ों में काट लें तथा इसकी 5 से 6 इंच की मोटी परत टांके की तली में बिछाले।
● अब इस कचरे के ऊपर 4से 5 किलो गोबर 100 से 125 लीटर पानी में डाल कर इसका घोल तैयार करले।गोबर के इस घोल का कचरे की परत पर अच्छी तरह से छिड़काव करे।
● अब टांके मे तीसरी परत के रूप मे 50-60 किलोग्राम साफ छनी हुई मिट्टी टांके मे फैलाकर डाले तथा थोड़ा गोबर का घोल छिड़क दें ताकि मिट्टी हवा से उड़े नही।
● अब टांके मे तीसरी परत के रूप मे 50-60 किलोग्राम साफ छनी हुई मिट्टी टांके मे फैलाकर डाले तथा थोड़ा गोबर का घोल छिड़क दें ताकि मिट्टी हवा से उड़े नही।
इस तरह परत बनाने के क्रम को तबतक दोहराते रहे जब तक टांका ऊपर तक भर न जाये। अंत मे सबसे उपरी परत को झोपड़ीनुमा आकार में बनाकर गोबर से लीपकर टांके को छोड़ दें।
कुछ ध्यान देने योग्य बाते
• किसान भाई ध्यान रखे कि इस पर दरार न पड़ने दें दरार पड़ने पर इसे बार बार गोबर से लीपते रहें।
• 5 से 6 दिन बाद जाली के छेदों में से देखें, गरमी का अहसास होगा।
• 15 से 20 दिन में टांके की सामग्री सिकुड़कर टांके के 8-9 इंच अंदर धंस जाएगी।
• 5 से 6 दिन बाद जाली के छेदों में से देखें, गरमी का अहसास होगा।
• 15 से 20 दिन में टांके की सामग्री सिकुड़कर टांके के 8-9 इंच अंदर धंस जाएगी।
• 10 - 15 दिनों बाद जाली के छेदों से हाथ डालकर ये देखते रहें कि जैविक सामग्री मे पर्याप्त नमी है। अगर नमी पर्याप्त नही है तो जरूरत के अनुसार इन्हीं छेदों के द्वरा टांके मे पानी छींटते रहें।
• 75 से 90 दिन बाद जब हमारी यह जैविक खाद लगभग पक गई हो और तापमान सामान्य हो जाये उस समय टांके में किसी औजार की सहायता से जगह जगह 15-20 छेद करें।
• अब एक-एक किलो राइजोबियम जीवाणु, एजेटोबेक्टर जीवाणु और पी.एस.बी. एक-एक बाल्टी पानी में अलग-अलग घोल कर अलग-अलग छेदों से टांके मे डालें। और छेदों को फिर से बंद कर दें। उचित यह होगा कि जिस फसल में उत्पादित खाद का उपयोग किया जाना है उसी फसल से संबंधित राइजोबियम कल्चर का उपयोग करें। खाद की गुणवत्ता भी सुधरेगी और नत्रजन, स्फुर व पोटाश की मात्रा भी बढ़ेगी। इसके साथ ही अधिक संख्या में जीवाणु भी होंगे।
• 75 से 90 दिन बाद जब हमारी यह जैविक खाद लगभग पक गई हो और तापमान सामान्य हो जाये उस समय टांके में किसी औजार की सहायता से जगह जगह 15-20 छेद करें।
• अब एक-एक किलो राइजोबियम जीवाणु, एजेटोबेक्टर जीवाणु और पी.एस.बी. एक-एक बाल्टी पानी में अलग-अलग घोल कर अलग-अलग छेदों से टांके मे डालें। और छेदों को फिर से बंद कर दें। उचित यह होगा कि जिस फसल में उत्पादित खाद का उपयोग किया जाना है उसी फसल से संबंधित राइजोबियम कल्चर का उपयोग करें। खाद की गुणवत्ता भी सुधरेगी और नत्रजन, स्फुर व पोटाश की मात्रा भी बढ़ेगी। इसके साथ ही अधिक संख्या में जीवाणु भी होंगे।
• 110-120 दिन बाद नाडेप विधि से आप की खाद पूरी तरह तैयार हो जाएगी। इसके बाद इस तैयार जैविक खाद को टांके से बाहर निकाल ले।
• खाद के ढेर को किसी छायादार स्थान पर रखकर सूखे पत्तों या टांट के खाली बोरे से ढक कर इस पर पानी का हल्का छिड़काव करें।
• ऊपरी परत का अधपका 10-15 प्रतिशत कचरा अलग कर उसे नया टांका भरते समय दोबारा प्रयोग करे।
• एक टांके से लगभग 3 टन से लेकर 3.5 टन तक अच्छी क्वालिटी की जैविक खाद प्राप्त होती हैं। जो एक हैक्टेयर क्षेत्र के लिये काफी है।
भू-नाडेप अथवा कच्चे नाडेप
किसान भाईयो नाडेप विधि से जैविक खाद बनाने के लिए भू-नाडेप अथवा कच्चा नाडेप सबसे सरल और बिना खर्च जैविक खाद बनाने का तरीका है। इस भू-नाडेप मे परम्परागत तरीके के विपरीत बिना गड्डा खोदे ही जमीन पर एक निश्चित आकार (12 फीट×5 फीट अथवा 10 फीट×6 फीट ) के अनुसार आयताकार बेड बनाया जाता है। इस प्रकार के आयताकार बेड का पक्के नाडेप की विधि के ही अनुसार टांका भरा जाता है।
इस विधि मे गोबर तथा कचरे का लगभग 5 से 6 फीट ऊंचाई तक एक आयताकार ढेर बनाया जाता है। इस आयताकार व व्यवस्थित ढेर को चारों ओर से गीली मिट्टी का लेप लगाकर बंदकर देते है। मिट्टी का लेप लगाने के दूसरे अथवा तीसरे दिन जब गीली मिट्टी सुख कर कुछ कड़ी हो जाये तब किसी गोलाकार या आयताकार टीन अथवा प्लास्टिक के डिब्बे से ढ़ेर की लम्बाई व चौड़ाई में 9-9 के अंतर पर 7-8 गहरे छिद्र बना दिए जाते है। इन छिद्रों के माध्यम से हवा का आवागमन होता है। और आवश्यकता पड़ने पर टांके मे पानी भी डाला जा सकता है। ताकि इन जैविक पदार्थो में पर्याप्त नमी बनी रहें और विघटन क्रिया अच्छी तरह से हो सके।
इस प्रकार से बने कच्चे नाडेप मे 3 से 4 माह के भीतर जैविक पदार्थ अच्छी तरह से पक जाता है। जिससे अच्छी तरह पकी हुई भुरभुरी, भूरे रंग की दुर्गन्ध रहित उत्तम गुणवत्ता की जैविक खाद तैयार हो जाती है।
टटिया नाडेप
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टटिया नाडेप टांका |
किसान भाईयो टटिया नाडेप भी भू-नाडेप अथवा कच्चे नाडेप की तरह ही होते हैं। लेकिन टटिया नाडेप मे आयताकार व व्यवस्थित गोबर और कचरे के ढ़ेर को चारों ओर से गीली मिट्टी का लेप नही लगते है। और ना ही ईंटो की दीवार बनाते है बल्कि इस की जगह बांस तथा बेशरम की लकड़ी आदि का प्रयोग करते है। इन बांस तथा बेशर्म से टटिया बनाकर ढेर को चारों ओर से बंद कर दिया जाता है। इसमें हवा का आवागमन स्वाभाविक रूप से हल्के छेद होने के कारण अपने आप ही होता रहता है।
किसान भाई कुछ अतिरिक्त कार्य करके नाडेप विधि से बनी कम्पोस्ट खाद की गुणवत्ता में और अधिक सुधार कर सकते है। जिससे ये खाद किसानों के लिए अधिक लाभकारी रहेगा।
• खेतो से प्राप्त जैव अवशेषों मे सूखा अवशेष 60 प्रतिशत तथा हरा अवशेषों का 40 प्रतिशत भाग प्रयोग मे ले ।ताकि कार्बन एवं नत्रजन का अनुपात सहीं रहे । जैव अवशेषों के इस अनुपात मे प्रयोग करने से स्फुर की कमी वाली मिट्टी मे भी सुधार आजाता है ।
• फसलो को दीमक के प्रकोप से बचने के लिए नीम की पत्तीयों का प्रयोग टांका भरते समय ही परत बनाने में करे। इस प्रकार बनी कम्पोस्ट खाद प्राकृतिक कीटनाशक का भी काम करेगी।
• जैव अवशेष के रूप मे गोमूत्र से भीगा हुआ पुआल,घास-फूस अथवा अन्य खरपतवार का प्रयोग करने से भी जैविक खाद की गुणवत्ता बढ़ जाती है ।
• नाडेप टांक भरते समय गोबर घोल के स्थान पर गोबर गैस की स्लरी घोल को प्रयोग करने से कम्पोस्ट खाद कम समय में तैयार हो जाती है ।
• इसके अलावा खाद के तैयार होने के अंतिम चरण में पोले बांस या पाइप के माध्यम से स्फुर घोलक जीवाणु इजोस्पाइरिलम एजोटोबेक्टर माइकोराहिजा ट्राइकोडर्मा आदि लाभदायी सूक्ष्म जीव के घोल को मिलाने से भी उच्च गुणवत्ता वाली कम्पोस्ट खाद प्राप्त की जा सकती है।
नाडेप विधि से बने कम्पोस्ट खाद की गुणवत्ता सुधारने हेतु कुछ अतिरिक्त उपाय
किसान भाई कुछ अतिरिक्त कार्य करके नाडेप विधि से बनी कम्पोस्ट खाद की गुणवत्ता में और अधिक सुधार कर सकते है। जिससे ये खाद किसानों के लिए अधिक लाभकारी रहेगा।
• खेतो से प्राप्त जैव अवशेषों मे सूखा अवशेष 60 प्रतिशत तथा हरा अवशेषों का 40 प्रतिशत भाग प्रयोग मे ले ।ताकि कार्बन एवं नत्रजन का अनुपात सहीं रहे । जैव अवशेषों के इस अनुपात मे प्रयोग करने से स्फुर की कमी वाली मिट्टी मे भी सुधार आजाता है ।
• फसलो को दीमक के प्रकोप से बचने के लिए नीम की पत्तीयों का प्रयोग टांका भरते समय ही परत बनाने में करे। इस प्रकार बनी कम्पोस्ट खाद प्राकृतिक कीटनाशक का भी काम करेगी।
• जैव अवशेष के रूप मे गोमूत्र से भीगा हुआ पुआल,घास-फूस अथवा अन्य खरपतवार का प्रयोग करने से भी जैविक खाद की गुणवत्ता बढ़ जाती है ।
• नाडेप टांक भरते समय गोबर घोल के स्थान पर गोबर गैस की स्लरी घोल को प्रयोग करने से कम्पोस्ट खाद कम समय में तैयार हो जाती है ।
• इसके अलावा खाद के तैयार होने के अंतिम चरण में पोले बांस या पाइप के माध्यम से स्फुर घोलक जीवाणु इजोस्पाइरिलम एजोटोबेक्टर माइकोराहिजा ट्राइकोडर्मा आदि लाभदायी सूक्ष्म जीव के घोल को मिलाने से भी उच्च गुणवत्ता वाली कम्पोस्ट खाद प्राप्त की जा सकती है।
प्रयोग विधि
नाडेप विधि से तैयार की गई कम्पोस्ट खाद की लगभग 3 से 4 टन मात्रा एक हेक्टेयर भूमि के लिए काफी होती है।इस कम्पोस्ट खाद को उपयोग मे लेने हेतु किसान भाई अपने खेतों मे फसल रोपण से 15 दिन पहले ही इस कम्पोस्ट खाद को खेत मे अच्छी तरह से फैलाकर 2 या 3 बार जुताई करे।ताकि कम्पोस्ट खाद अच्छी तरह से खेत की मिट्टी मे मिल जाये।
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