महासमुंद: एक ऐसा किसान जो कभी पानी की कमी तो कभी पानी की अधिकता से फसलों को मरते तबाह होते देखता रहा ।
लेकिन कभी इस किसान ने हिम्मत नही हारी होसला कई बार टूटा दलाल और मौसम की मार ने कई बार लाखों का नुकसान पहुंचाया, लेकिन उसने हार नहीं मानी। खेती करने और इसे लाभ का धंधा बनाने की उसकी जिद के आगे कठिनाईया झुक गई और आज वह प्रदेश का नंबर वन तथा उन्नत शील किसान बन गया है। हम जिस किसान की बात कर रहे हैं वह हे महासमुंद जिले के छपोराडीह गांव के 39 वर्षीय किसान गजानंद पटेल की जो आज सिर्फ खेती करके सालाना चालीस लाख रुपए कमाते हैं।
लेकिन कभी इस किसान ने हिम्मत नही हारी होसला कई बार टूटा दलाल और मौसम की मार ने कई बार लाखों का नुकसान पहुंचाया, लेकिन उसने हार नहीं मानी। खेती करने और इसे लाभ का धंधा बनाने की उसकी जिद के आगे कठिनाईया झुक गई और आज वह प्रदेश का नंबर वन तथा उन्नत शील किसान बन गया है। हम जिस किसान की बात कर रहे हैं वह हे महासमुंद जिले के छपोराडीह गांव के 39 वर्षीय किसान गजानंद पटेल की जो आज सिर्फ खेती करके सालाना चालीस लाख रुपए कमाते हैं।
पटेल के पास सिर्फ चार एकड़ ही कृषि भूमि है, जिसमे पहले उन्हें धान की फसल उगाते थे। धान की फसल से उनहे महज 80 हजार रुपए का अधिकतम सालाना लाभ मिलता था।जिसमे घर परिवार को चलाना उनके लिये बहुत ही कठिन था। गजानंद पटेल ने पारम्परिक खेती छोडकर फल और सब्जी की खेती शुरू की, अब फल और सब्जी की खेती से इतनी ही जमीन पर न्यूनतम चालीस लाख की सालाना कमाई हो रही है। गजानंद पटेल पॉलीहाउस खेती करने वाले प्रदेश के पहले किसान हैं। वे कहते हैं, ‘खेती के लिए जीवटता के साथ व्यवसायिक दृष्टिकोण भी जरूरी है।गजानंद पटेल नई-नई वैज्ञानिक तकनीको का प्रयोग करते है।और बताते हे कि नई-नई तकनीकों के प्रयोग से ही किसान उन्नत शील होगा, इसलिए उनहोने खुद भी पॉलीहाउस खेती को अपनाया।
किसान अक्सर मौसम और कीट-पतंगों की मार से फसल को नहीं बचा पाता,अधिक वर्षा तथा ओलावृष्टी मे फसल बर्बाद हो जाती है ऐसे में पॉलीहाउस वरदान साबित हुआ है। मौसम चाहे जो हो, यहां की फसल सौ फीसदी उत्पादन से किसान को लाभ पहुंचाएगी।
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दो साल में 25 लाख का नुकसान
गजानंद पटेल को तरबूज ने मुंबई के बाजार में खासी पहचान दिलाई।उनकी तरबूज की इस खेती को देश के कई हिस्सों से किसान यहा देखने पहुंचे। बहुत से दलालों की गिद्ध नजर भी उनकी इस फसल पर पड़ी, दलालो ने अधिक मुनाफा दिलाने के नाम पर साल 2003 में उनहे आठ लाख रुपए चूना लगा दिया। अभी दलालों की मार से उबर भी नहीं पाए थे कि साल 2004 में हुई ओलावृष्टि ने सोलह लाख की फसल को पूरी तरह बरबाद कर दिया। दो साल के भीतर ही पचीस लाख रुपए का नुकसान हुआ, लेकिन उनहोने हार नही मानी, और ना ही फल तथा सब्जी की खेती से मुंह मोड़ा, लगातार अपने होंसले और कडी महनत से आगे बढते रहे सफलता ने उनके कदमो को चूमा और आज गजानंद पटेल एक उन्नत शील किसान हैं।
डेढ़ महीने में 17 लाख का फायदा
गजानंद पटेल ने अपनी बंजर हो रही मैदानी जमीन में खीरा और शिमला मिर्च की खेती करके यह साबित कर दिया है, कि कम लागत में अधिक मुनाफा प्राप्त किया जा सकता है। गजानंद ज्यादा पढे लिखे भी नही हे उनहोने महज मिडिल स्कूल तक की शिक्षा प्राप्त की है, लेकिन आज हार्टीकल्चर डिपार्टमेंट उनके द्वारा तैयार वर्मी कंपोस्ट खाद खरीद रहा है। विभाग की सलाह पर गजानंद ने लिलियम फूल की खेती की और डेढ़ महीने में भोपाल बाजार से 17 लाख रुपए का मुनाफा कमाया। अब झरबेरा फूल की तैयारी शुरू की गई है। जल्द ही इसकी खेती होगी।
प्रधानमंत्री जी भी गजानंद पटेल को कर चुके हैं सम्मानित
फसल परिवर्तन की ऐसी सफलता राज्य में किसी किसान ने हासिल नहीं की, यह राज्य सरकार के साथ कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक भी मानते हैं। इस सफलता के लिए गजानंद को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह, कृषि मंत्री बृजमोहन अग्रवाल समेत कई कृषि वैज्ञानिक समय-समय पर सम्मानित कर चुके हैं। गजानंद सम्मान को आगे बढ़ने का रास्ता मानते हैं। अब उनसे उन्नत बीच तैयार करने का तरीका सीखने कृषि वैज्ञानिक भी गांव पहुंच रहे हैं।
किसानों के लिए प्रेरणा हे गजानंद
एक दशक से फल और सब्जी की खेती में गांव के साथ क्षेत्र को नई पहचान देने वाले किसान गजानंद, दूसरे किसानों के लिए प्रेरणा बन गए हैं। छपोराडीह के देवसिंह साहू, सोहनलाल निषाद, झड़ीराम ध्रुव और प्रभुराम दीवान जैसे पचास से अधिक किसानों ने तरबूज की खेती में गजानंद के अनुभवों का लाभ उठाते हुए महानगरीय बाजार में जगह बना ली है। वे कहते हैं कि पटेल ने हमें एक फसली खेती की हताशा भरी जिंदगी से उबारा है, पहले वे कर्ज लेकर खेती करते थे, लेकिन अब इसकी आवश्यकता नहीं है।धीरे-धीरे अब उनके आर्थिक हालात सुधर रहे है।
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