Wednesday, November 30, 2016

खीरे की आधुनिक खेती



खीरा
आज के आधुनिक युग में प्रत्येक उन्नत किसान सब्जियों की खेती करके अधिक से अधिक लाभ ले रहा है।खीरे की खेती भी इन में से एक है जो किसानों के लिए काफी फायदेमंद साबित हो रही है।
बाजार में खीरे की अधिक मांग बने रहने के कारण खीरे की खेती किसान भाइयो के लिए बहुत ही लाभदायक है।खीरे का उपयोग खाने के साथ सलाद के रूप में बढ़ता ही जा रहा है।जिससे बाजार में इसकी कीमते भी लगातार बढ़ रही है।इसके साथ ही खीरे की खेती रेतली भूमि में अच्छी होती ऐसे में किसान भाइयो के पास जो ऐसी भूमि है जिसमे दूसरी फसलो का उत्पादन अच्छा नहीं होता है उसी भूमि में खीरे के खेती से अच्छा उत्पादन लिया जा सकता है।



खीरे की खेती के लिए उत्तम जलवायु
खीरा की फसल के लिए शीतोषण एवम समशीतोषण दोनों ही जलवायु अच्छी मानी गयी हैI खीरे के फूल खिलने के लिए 13 से 18 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान अच्छा होता है। तथा पौधों के विकास और अच्छी पैदावार के लिए 18 से 24 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान की आवश्यकता होती है। खीरे की फसल पर कोहरे का बुरा असर पड़ता है।इसके अलावा अधिक नमी मे इस के फल पर धब्बे पड़ जाते  हैं।
उत्तम मिटटी
खीरे की अच्छी पैदावार के लिए अच्छे जल निकास वाली दोमट एवम बलुई दोमट भूमि उत्तम मानी जाती है। खीरा की खेती के लिए भूमि का पी एच 5.5 से 6.8 तक अच्छा माना गया है। नदियों की तलहटी में भी इसकी खेती अच्छी पैदावार देती है।
खीरे की फसल के  लिए  मैरा या काम रेतली भूमि ठीक है।
खीरे की उन्नत किस्मे
पंजाब नवीन>  पंजाब नवीन खीरे की अच्छी किस्म  है। इस किस्म में कड़वाहट कम होती है। और इसका बीज भी खाने  लायक  होता  है। इसकी फसल 70 दिन मे तुड़ाई लायक होजाती हैं। इसकी औसत पैदावार 40 से 50 कु. / एकड़ तक होती है।
इसके अलावा खीरे की प्रमुख प्रजातियां निम्नलिखित है।
हिमांगी, जापानी लॉन्ग ग्रीन, जोवईंट सेट, पूना खीरा, पूसा संयोग, शीतल, फ़ाईन सेट, स्टेट 8 , खीरा 90, खीरा 75, हाईब्रिड1 व् हाईब्रिड2, कल्यानपुर हरा खीरा इत्यादि प्रमुख है।
खेत की तैयारी
खीरे की फसल के लिए खेत की कोई खास तैयारी  करने की आवश्यकता नही पड़ती है। क्योंकि इसकी फसल के लिए खेत की तैयारी भूमि की किस्म के ऊपर निर्भर होती है। बलुई भूमि के लिये अधिक जुताई की आवश्यकता नहीं होती। 2-3 जुताई से ही खेत तैयार होजाता है। जुताई के बाद खेत में पाटा लगाकर क्यारियां बना लेनी चाहिए । भारी-भूमि की तैयारी के लिये अधिक जुताई की आवश्यकता पड़ती है। बगीचों के लिये भी यह फसल उपयोगी है जोकि आसानी से बुआई की जा सकती है।
खेत की बिजाई
खीरे की फसल के लिए खेतो में बिजाई का समय सही समय फरबरी मार्च है।
बीज की मात्रा :- एक किलो /एकर
बिजाई का ढंग :- बीज को ढाई मीटर की चौड़ी बेड पर  दो दो फुट के फासले  पर बीज सकते  हैं। खीरे की बिजाई उठी हुई मेढ़ो के ऊपर करना ज्यादा अच्छा हैं। इसमें मेढ़ से मेढ़ की दूरी 1 से 1.5 मीटर रखते है। जबकि पौधे से पौधे की दुरी 60 सें.मी. रखते हैं। बिजाई करते समय एक जगह पर कम से कम दो बीज लगाएं।
खाद तथा उर्वरक की उचित मात्रा
खीरे की अच्छी फसल के लिए खेत की तैयारी करते समय ही 6 टन गोबर की अच्छी तरह सड़ी खाद खेत मेें जुताई के समय मिला दें। 20 किलोग्राम नाइट्रोजन, 12 किलोग्राम फास्फोरस व 10 किलोग्राम पोटाश की  मात्रा खीरे के लिए पर्याप्त रहती है। खेत में बिजाई के समय 1/3 नाइट्रोजन, फास्फोरस की पूरी मात्रा तथा पोटाश की पूरी मात्रा डालदे। बची हुई नाइट्रोजन को  दो बार में बिजाई के एक महीने बाद व फूल आने पर खेत की नालियों में डाल कर मिट्टी चढ़ा दें।
खेत की सिंचाई
बरसात में ली जाने वाली फसल के लिए प्राय: सिंचाई की आवश्यकता नही कम ही पड़ती है। यदि वर्षा लम्बे समय तक नहीं होती है तो अवश्य ही सिंचाई कर देनी चाहिए। गर्मी की फसल में सिंचाई की जरूरत समय-समय पर पड़ती रहती है इसके लिए आवश्यकतानुसार 7-8 दिन के अंतराल पर सिंचाई करते रहना चाहिए। बेलो पर फल लगते समय नमी का रहना बहुत ज़रूरी है। अगर खेत में  नमी की कमी हो तो फल कड़वे भी हो सकते हैं।

खरपतवार नियन्त्रण 
किसी भी फसल की अच्छी पैदावार लेने की लिए खेत में खरपतवारो का नियंत्रण करना बहुत जरुरी है। इसी तरह खीरे की भी अच्छी पैदावार लेने के लिए खेत को खरपतवारों से साफ रखना चाहिए। इसके लिए गर्मी में 2-3 बार तथा बरसात में 3-4 बार खेत की निराई-गुड़ाई करनी चाहिए।
फ्लो की तुड़ाई
खीरे के फलों को कच्ची अवस्था में तोड़ लेना चाहिए जिससे बाजार में उनकी अच्छी कीमत मिल सके। फलों को एक दिन छोड़ कर तोड़ना अच्छा रहता है। फलों को तेजधार वाले चाकू या थोड़ा घुमाकर तोड़ना चाहिए ताकि बेल को किसी तरह का नुकसान न पहुंचे।
खीरे की फसल को तोड़ते समय ये नरम होने चाहिए। पीले फल नहीं  होने देना चाहिए।
अगली फसल के लिए खीरे का बीज कैसे तैयार करें ?
खीरे का बीज तैयार करते समय खीरे की 2 किस्मो के बीच काम से काम 800 मीटर की दुरी होनी चाहिए।
जिन पौधें पर सही आकार, प्रकार और रंग के फल न आएं उन पौधों को तुरन्त निकाल देना चाहिए। बीज उत्पादन के लिए जब फल पीला पड़ जाए तथा बाहरी आवरण में दरारें पड़ जाएं उस समय तोड़ लेने चाहिए। फलों को लम्बाई में काटकर गुद्दे से बीज को हाथ से अलग करके साफ पानी से धेएं और बीजो को धूप में सुखाकर उनका भण्डारण करें।
संकर प्रजाति के खीरे का बीज तैयार करना
संकर प्रजाति के खीरे के बीजोत्पादन के लिए मादा गाईनोसियस तथा नर मोनोसियस पैतश्क लाईनों का प्रयोग किया जाता है। मादा तथा नर लाईनों को खेतों में 3:1 के अनुपान में लगाया जाता है। परपरागण के बाद मादा लाईनों से फल तोड़कर फल से संकर बीज निकाला जाता है। मादा लाईनो के प्रतिपादन के लिए 250 पी.पी. एम. सिल्वर नाईट्रेट के घोल का पौधें पर दो बार 2-3 पत्तों व 4-6 वाली अवस्थाओं में छिड़काव किया जाता है जिससे उनमें नर फूल निकल आते हैं तथा मादा गाईनोसियस लाईनों का प्रतिपादन हो जाता है।


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Tuesday, November 8, 2016

मटर की आधुनिक खेती कैसे करे? Kisan Help Room



सब्जियों की खेती करने वाले किसान भाइयो के लिए हम इस लेख में लेकर आए हे मटर की खेती से सम्बंधित जानकारी।
दलहनी सब्जियों की बात करे तो हर मौसम में सब्जी वाली मटर पहले नंबर पर होती है। मटर किसान भाइयो के लिए एक खास फसल है, जिसकी मांग पुरे वर्ष बनी रहती है, क्यों की ये सब्जी के अलावा अन्य पकवानों में भी इस्तेमाल की जाती है।साथ ही इस के हरे पौधों को फल तोड़ाई के बाद उखाड़ कर पशुओं के लिए हरे चारे के तौर पर प्रयोग कर सकते हैं। सब्जी वाली मटर की खेती हमारे देश के मैदानी इलाकों में सर्दियों में और पहाड़ी इलाकों में गरमियों में की जाती है. मध्य प्रदेश, बिहार, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब व हरियाणा राज्यों में बड़े पैमाने पर इस की खेती की जाती है। उत्तर प्रदेश में तो आज बड़े पैमाने पर मटर की खेती की जा रही है। मौजूदा समय में मटर की डिमांड हर मौसम में होने की वजह से परिरक्षण द्वारा इस की डब्बाबंदी का कारोबार बढ़ गया है। ऐसे में जरा सी भी सूझबूझ दिखाने पर किसान भाई सब्जी वाली मटर की खेती कर के भरपूर लाभ ले सकते हैं।



मटर में भरपूर मात्रा में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, विटामिन व खनिजलवण पाए जाते हैं।
आइये जानते है मटर की उन्नत खेती कैसे करे?
मटर के लिए खेत का चयन : अम्लीय भूमि सब्जी मटर की खेती के लिए बिल्कुल ठीक नहीं होती है. अच्छे जल निकास वाली बलुई दोमट भूमि जिस का पीएच मान 6 से 7.5 के बीच हो, सब्जी मटर की खेती के लिए सही मानी जाती है।
खेत की तैयारी:  मटर की खेती के लिए खेत का पलेवा कर के पहली जुताई मिट्टी पलट हल से करे इसके बाद  2 जुताइयां देशी हल या कल्टीवेटर से कर के पाटा लगा कर खेत को भुरभुरा व समतल कर लेना चाहिए। 
बुवाई का समय तथा बीज की मात्रा:  मटर की बिजाई का समय अक्तूबर के पहले सप्ताह से ले कर नवंबर के अंतिम सप्ताह तक होता है. अगेती बोआई के लिए 120 से 150 किलोग्राम और मध्य व पछेती बोआई के लिए 80 से 100 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की दर से लगते हैं।

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उत्तम प्रजातियां : किसान भाई अपने इलाके के अनुसार रोगरोधी प्रजातियों का चयन किसी कृषि वैज्ञानिक से सलाह लेने के बाद करें तो बहुत लाभ दायक है, इसके अलावा कुछ उन्नत किस्म की प्रजातियों की जानकारी यहाँ दी जा रही है।
फील्ड मटर
 इस प्रकार की किस्मो का उपयोग साबुत मटर, दाल के लिये, दाने एवं चारे के लिये किया जाता है। इन किस्मो मे प्रमुख रूप से रचना, स्वर्णरेखा, अपर्णा, हंस, जे.पी.-885, विकास, शुभा्र, पारस, अंबिका आदि है।
गार्डन मटर
 इस प्रकार की किस्मो का उपयोग सब्जियो के लिये किया जाता है। 
अगेती किस्मे (जल्दी तैयार होने वाली)
आर्केल:  यह यूरोपियन अगेती किस्म है इसके दाने मीठे होते है इसमें बुवाई के 55-65 दिन बाद फलियाँ तोड़ने योग्य हो जाती है इसकी फलियाँ 7-10 से.मी. लम्बी एक समान होती है प्रत्येक फली में 5-6 दाने होते है हरी फलियों की 70-100 क्विंटल उपज मिल जाती है इसकी फलियाँ तीन बार तोड़ी जा सकती है इसका बीज झुर्री दार होता है।
बोनविले:  यह जाति अमेरिका से लाई गई है इसका बीज झुर्री दार होता है यह मध्यम उचाई की सीधे उगने वाली जाति है यह मध्यम समय में तैयार होने वाली जाति है इसकी फलियाँ बोवाई के 70-75 दिन बाद तोड़ने योग्य हो जाती है फूल की शाखा पर दो फलियाँ लगती है इसकी फलियों की औसत पैदावार 130-140 क्विंटल प्रति हे. तक प्राप्त होती है।
अर्ली बैजर:  यह किस्म संयुक्त राज्य अमेरिका से लाई गई है यह अगेती किस्म है बुवाई के 65-70 दिन बाद इसकी फलियाँ तोड़ने केलिए तैयार हो जाती है फलियाँ हलके हरे रंग की लगभग 7 से.मी. लम्बी तथा मोटी होती है दाने आकार में बड़े ,  मीठे व झुर्रीदार होते है हरी फलियों की औसत उपज 70-100 क्विंटल प्रति हे. होती है।
अर्ली दिसंबर:  टा. 21 व अर्ली बैजर के संस्करण से तैयार की गई है यह अगेती किस्म है 55-60 दिनों में तोड़ने के लिए तैयार हो जाती है फलियों की लम्बाई 6-7 से.मी. व रंग गहरा हरा होता है हरी फलियों की औसत उपज 70-100 क्विंटल प्रति हे. हो जाती है।
असौजी:  यह एक अगेती बौनी किस्म है इसकी फलियाँ बोवाई के 55-65 दिन बाद तोड़ने योग्य हो जाती है इसकी फलियाँ गहरे हरे रंग की 5-6 से. मी. लम्बी व दोनों सिरे से नुकीली , लम्बी होती है प्रत्येक फली में 5-6 दाने होते है हरी फलियों की औसत उपज 90-100 क्विंटल प्रति हे. होती है।
पन्त उपहार:  इसकी बुवाई 25 अक्टूम्बर से 15 नवम्बर तक की जाती है और इसकी फलियाँ बुवाई से 65-75 दिन बाद तोड़ने योग्य हो जाती है।
जवाहर मटर :  इसकी फलियाँ बुवाई से 65-75 दिन बाद तोड़ने योग्य हो जाती है यह मध्यम किस्म है फलियों की औसत लम्बाई 7-8 से. मी. होती है और प्रत्येक फली में 5-7 बीज होते है फलियों में दाने ठोस रूप में भरे होते है हरी फलियों की औसत पैदावार 130-140 क्विंटल प्रति हे. होती है।
मध्यम किस्मे
T9:   यह भी मध्यम किस्म है इसकी फलियाँ 75 दिन में तोड़ने लायक हो जाती है फसल अवधि 120 दिन है पौधों का रंग गहरा हरा फूल सफ़ेद व बीज झुर्रीदार व हल्का हरापन लिए हुए सफ़ेद होते है फलियों की पैदावार 70-100 क्विंटल प्रति हे. पैदावार होती है।
T56:  यह भी मध्यम अवधि की किस्म है पौधे हलके हरे , सफ़ेद बीज झुर्रेदार होते है हरी फलियाँ 75 दिन में तोड़ने लायक हो जाती है प्रति हे. 70-95 क्विंटल हरी फलियाँ प्राप्त हो जाती है।
NP29:  यह भी अगेती किस्म है फलियाँ 75-85 दिन में तोड़ने लायक हो जाती है इसकी फसल अवधि 100-115 दिन है बीज झुर्रीदार होते है। हरी फलियों की औसत पैदावार 110-120 क्विंटल प्रति हे. है।
पछेती किस्मे (देरी से तैयार होने वाली):  ये किस्मे बोने के लगभग 100-110 दिनो बाद पहली तुड़ाई करने योग्य हो जाती है जैसे- आजाद मटर-2, जवाहर मटर-2 आदि।     
बीजोपचार :  जड़सड़न, तनासड़न, एंथ्रेक्नोज, बैक्टेरियल ब्लाइट व उकठा बीमारियों से बचाव के लिए बीजों को 2 ग्राम कार्बेंडाजिम प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से उपचारित कर के बोआई करें। पीएसबी कल्चर व राइजोबियम कल्चर से बीजों को उपचारित कर के बोने से 10 से 15 फीसदी तक उत्पादन अधिक होता है। इस के लिए 1.5 किलोग्राम राइजोबियम कल्चर को 10 फीसदी गुड़ के घोल में मिला कर प्रति किलोग्राम की दर से बीजों को अच्छी तरह से उपचारित कर के व सुखा कर उसी दिन बोआई कर देनी चाहिए. उकठा रोग से बचाव के लिए 4-5 ग्राम ट्राइकोडर्मा फफूंदनाशक से प्रति किलोग्राम के हिसाब से बीजों को उपचारित करना चाहिए।
बीज रोपाई:  बुवाई सीडड्रिल से करें या देशी हल के पीछे कूंड़ों में सीधी कतारों में करें। जल्दी तैयार होने वाली किस्मों को कतार से कतार 30 सेंटीमीटर की दूरी पर और मध्यम अवधि की प्रजातियों को 45 सेंटीमीटर की दूरी पर बोएं. पौध से पौध की दूरी 10-15 सेंटीमीटर रखनी चाहिए। बीजों की बोआई 5-7 सेंटीमीटर गहराई पर करें।
खाद तथा उर्वरक : सब्जी मटर की खेती में मोटे तौर पर 20 टन खूब सड़ी हुई एफवाईएम (सड़ी गोबर की खाद), 25 किलोग्राम नाइट्रोजन, 50-70 किलोग्राम फास्फोरस और 50 किलोग्राम पोटाश युक्त उर्वरक प्रति हेक्टेयर देना बेहतर होता है. नाइट्रोजनयुक्त उर्वरकों का ज्यादा इस्तेमाल नाइट्रोजन स्थिरीकरण और गांठों के निर्माण में बाधा पहुंचाता है. मटर की खेती में फास्फेटिक उर्वरक अच्छा नतीजा देता है. इस से गांठों का निर्माण अच्छा होता है. नाइट्रोजन की आधी मात्रा और फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा बोआई के 25-30 दिनों बाद टाप ड्रेसिंग के रूप में देनी चाहिए।
खरपतवार नियंत्रण :  बुवाई के समय ही खरपतवारों का रासायनिक विधि द्वारा नियंत्रण करना चाहिए। इस के लिए पेडीमेथलीन 30 ईसी की 3.3 लीटर मात्रा को 600-800 लीटर पानी में घोल कर बोआई के 2 दिन बाद प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें या  2.25 लीटर वासालीन को 1000 लीटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें. बोआई के 25-30 दिनों बाद निराईगुड़ाई करने से खरपतवार नियंत्रण के साथ ही साथ जड़ों को हवा भी मिल जाती है.
सिंचाई : पहली सिंचाई फूल आते समय करनी चाहिए. यदि बारिश हो जाए तो सिंचाई न करें. दूसरी सिंचाई फलियां बनते समय करनी चाहिए. सूखे इलाकों में बौछारी सिंचाई बेहतर होती है.
मटर में लगने वाले प्रमुख रोग तथा इनसे बचाव
चूर्णिल आसिता : यह एक बीजजनित बीमारी है. यह बीमारी तना, पत्तियों व फलियों को प्रभावित करती है. इस बीमारी में पत्तियों पर हलके गोल निशान बन जाते हैं, जो सफेद पाउडर (चूर्ण) के रूप में पत्तियों को ढक देते हैं. इस के कारण बाद में सभी पत्तियां गिर जाती हैं. इस की रोकथाम के लिए 2-3 किलोग्राम गंधक का चूर्ण 600-800 लीटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें।
उकठा (फ्यूजेरियम विल्ट) :  यह फफूंद से होने वाली बीमारी है. इस से पौधों की पत्तियां नीचे से ऊपर की ओर पीली पड़ने लगती हैं और अंत में पूरा पौधा सूख जाता है. यह बीमारी गरमी बढ़ने के कारण बढ़ने लगती है. इस से बचाव हेतु फसलचक्र को अपनाना चाहिए। जिस में ज्वार, बाजरा व गेहूं की फसलें शामिल हो सकती हैं। खेत में हरी खाद के साथ 1 सप्ताह के अंदर 5 किलोग्राम ट्राइकोडर्मा पाउडर प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए. बोआई से पहले बीजों को 2.5 ग्राम कार्बंडाजिम से प्रति किलोग्राम की दर से उपचारित कर लेना चाहिए।
रस्ट (गेरुई) : यह रोग फफूंद द्वारा फैलता है. यह नम स्थानों पर ज्यादा फैलता है. शुरू में पत्तियों की निचली सतह पर छोटेछोटे गेरुई या पीले रंग के उड़े हुए धब्बे बनते हैं। धीरेधीरे इन धब्बों का रंग भूरा लाल पड़ने लगता है। कई धब्बों के आपस में मिलने से पत्तियां सूख जाती हैं। इस के असर से पौधे जल्दी सूख जाते हैं और उपज कम हो जाती है। इस रोग से बचाव के लिए सब से पहले रोगी पौधों को नष्ट कर देना चाहिए। उस के बाद हेक्साकोनाजोल की 1 मिलीलीटर मात्रा को 3 लीटर पानी में घोल कर या विटरेटीनाल की 1 ग्राम मात्रा को 2 लीटर पानी में घोल कर 1 से 2 बार छिड़काव करें।
एंथ्रेक्नोज : यह भी एक बीज जनित बीमारी है. इस बीमारी में पत्तियों के ऊपर पीले से काले रंग के सिकुड़े हुए धब्बे बन जाते हैं, जो बाद में पूरी पत्ती को ढक लेते हैं. छोटे फलों पर काले रंग के धब्बे बन जाते हैं और रोगी फलियां सिकुड़ कर मर जाती हैं। यह बीमारी बीजों के जरीए एक मौसम से दूसरे मौसम में जाती है. इस से बचाव के लिए बोआई से पहले बीजों को 2.5 ग्राम कार्बंडाजिम दवा से प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करना चाहिए। रोगरोधी किस्मों का प्रयोग करना चाहिए. फूल आने के बाद 1 ग्राम कार्बंडाजिम का 1 लीटर पानी में घोल बना कर छिड़काव करें।
बैक्टेरियल ब्लाइट : यह एक बीज जनित बीमारी है, जो नमी वाले वातावरण में ज्यादा फैलती है. इस रोग में डंठल के नीचे की पत्तियों व तनों पर एक पनीला धब्बा बन जाता है। सफेद से रंग का स्राव भी दिखता है. धीरेधीरे प्रभावित हिस्सा भूरा होने लगता है. इस से बचाव के लिए रोग रहित बीज का इस्तेमाल करना चाहिए और बीजशोधन भी कर लेना चाहिए। फसल प्रभावित होने पर स्ट्रेप्टोसाइक्लिन केमिकल का छिड़काव फायदेमंद होता है।
मटर की फसल को लगने वाले प्रमुख कीट तथा नियंत्रण
माहू :  इस कीड़े का प्रकोप जनवरी के महीने में ज्यादा होता है. यह कीड़ा पत्तियों और कोमल टहनियों का रस चूसता है. इस से बचाव के लिए मैलाथियान 50 ईसी कीटनाशक दवा की 1.5 मिलीलीटर मात्रा को 1 लीटर पानी में घोल कर 10-10 दिनों के अंतराल पर छिड़काव करना चाहिए।
लीफ माइनर (पत्ती में सुरंग बनाने वाला कीट) :  यह कीट पौधों की पत्तियों में सफेद धागे की तरह बारीक सुरंग बनाता है। इस के प्रकोप से पत्तियां सूख जाती हैं. बचाव के लिए सुरंग बनाने वाले कीड़ों से प्रभावित पत्तियों को सूंड़ी व कृमिकोश सहित तोड़ कर जमीन में कहीं दूर गाड़ देना चाहिए।
फलीछेदक :  यह कीट फलियों में छेद कर के दानों को खाता रहता है. इस कीड़े के असर वाली फलियां रंगहीन, पानीयुक्त व दुर्गंधयुक्त हो जाती हैं. इस से बचाव के लिए थायोडान नामक दवा की 2 मिलीलीटर मात्रा का 1 लीटर पानी में घोल बना कर छिड़काव करें।
तोड़ाई :  मटर की फसल से ज्यादा आमदनी लेने के लिए समय से तोड़ाई करना जरूरी होता है. मटर की तोड़ाई हाथ से की जाती है. तोड़ाई के समय पौधों को नुकसान नहीं पहुंचना चाहिए। फलियां भरी हुई व मुलायम ही तोड़नी चाहिए. तोड़ाई सुबह या शाम को करें. 10 दिनों के अंतर पर 3-4 बार तोड़ाई करनी चाहिए।
भंडारण : किसान भाइयो को बीज भंडारण के लिए  निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए।
1  बीजों में नमी की मात्रा 9 फीसदी से कम होनी चाहिए। ज्यादातर कीट इतनी कम नमी में प्रजनन नहीं कर पाते।
2 नए बीजों को रखने से पहले अच्छी तरह साफ कर के कीटनाशी द्वारा कीट रहित कर लेना चाहिए।
3  बीज भंडारण के लिए नए बैग इस्तेमाल करने चाहिए।
4  कीट का प्रकोप होने पर 3-5 ग्राम की एल्यूमीनियम फास्फाइड की 2 गोलियां प्रति टन की दर से 3-5 दिनों तक रख कर बीजों को कीट रहित करना चाहिए।

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